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________________ मलाराधना ७५५ आठ ज्ञानाचार, आठ दर्शनाचार, बारा तप, पांच समिति और तीन गुप्ति ऐसे आचार्यके छत्तीस गुण हैं. अथवा आचारवच्चादिक आठ गुण, अचेलक्यादिक स्थितिकल्पके दस गुण, वारा प्रकारके तप तथा छह आवश्यक ऐसे आचार्य के छत्तीस गुण हैं. सच्चे व तिष्णसंगा तित्थयरा केवली अनंतजिणा ॥ विसोधिदिसंति ते वि य सदा गुरुसया मे ॥ ५२७ ॥ सबै तीर्थकृतो नंतजिनाः केवलिनो यतः ॥ अस्थस्य महाशुद्धिं वदन्ति गुरुसन्निधौ ॥ ५४७ ॥ विजयोदया सर्वेषां तीर्थकृतामयमाशा-गुरोर्निवेद्यात्मापराधं तदुक्तं प्रायश्चित्तं कृत्वा शुद्धिः कार्येति । सम्देवि तित्थयरा सर्वेऽपि तीर्थंकराः । तिष्णसंगा तीर्णलंगा उल्लंघितपरिग्रहागाधपंकाः । सब्बे वि केवली सर्वेऽपि केवलिनः । परिमाप्त स्वर्गावतरणादिकल्याणत्रयाः । केवलज्ञानावरणश्यावृधिगतविश्वज्ञानाः केवलिनः । अनंतजिणा अनंतसंसारकारकत्वाचारित्रसर्वधातिमिष्यात्वं द्वादशकपायाश्च मनंतं तज्जयादनंतजिना आचार्योपाध्याय साधयः । तेऽपि सर्वे सदा गुरुसकामे सोधिदिति सदा गुरुसमीपे रत्नत्रयशुद्धिं दर्शयन्ति । कस्य ? दुमत्थस्स उमस्थस्य संबंधिनीमिति केचिदस्ति । रत्नत्रयपरिणामात्मको रत्नविशुद्धया भवतीति उद्मस्थस्य विशुद्धिरित्युक्तवानयं । चैतमा सर्वतीर्थकुदाक्षया छदास्थास्यति गुरुसाक्षिकायाः शुद्धः प्रदर्शिकाया: सद्भावादिति दर्शयन्नाहगुलारा - तिसंगा तीर्णोऽतितः सगो यैस्ते यथा इत्यर्थः । यतजिया अनंतसंसारकारणत्वादि कर्मा जितवंत एकदेशेनाचार्योपाध्यायसात्र चोत्र विलुप्तनिर्दिष्टो द्रष्टव्यः । तीर्थकराणामेव वा विशेषणमिदं । तेद्दि संसारकारणत्वादि जितवंतस्तस्करणकर्मनिर्मूलकत्वात् । अर्थ- सर्व तीर्थकरोंकी ऐसी आज्ञा है कि, गुरुको अपने अपराध कहकर उन्होंने दिया हुआ प्रायवित्त लेकर आत्मशुद्धि करनी चाहिये. सर्व तीर्थकर परिग्रहरूप अगाध कीचडको उध कर मुक्त होगये हैं. सर्व कंवलज्ञानी पुरुष स्वर्ग से इस भूतलपर जन्म लेकर तीन कल्याणोंके धारक हुए हैं. केवलज्ञानावरण कर्मके क्षयमे संपूर्ण विश्वका ज्ञान उनको हुआ था. चारित्रमोहनीय कर्म, मिध्यात्व और अप्रत्याख्यानादि वारा कपाय इनको अनंत संज्ञा है. इनके ऊपर जिन्होंने जय प्राप्त कर लिया ऐसे आचार्य, उपाध्याय और सर्व साधुओं का यहां अनंत जिन आथान ४ ७४५
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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