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________________ मूलाराधना आश्वासा दुःखोका नाश करनेवाली आराधनापताका हाथमें ग्रहण करनेका तुमने निश्चय किया है. इस रत्नत्रयरूप आराधनासे कर्मोंका नाश होता है, काँका नाश होनेपर दुःखका अभाव होता है. अच्छाहि ताम सुविहिद वीसत्यो मा य होहि उब्बादो ॥ पडिचरएहिं समंता इणमट्ठ संपहारेमो ॥ ५१४ ।। महामते निष्ठ निराकुलः स्वं प्रयोजनं यावदिदं स्वदीयं ॥ समं सहायरवधारया मस्तत्त्वेन कृत्यं हि परीक्ष्य सद्भिः ॥ ५३३ ।। इति उत्सर्पणसूत्रम् । चिजयोन्या-अच्छाति ताव सुधिद्धिद आस्थ साययते । चीसत्यं विश्वस्तं । मा य होहि उज्यादो व्याकुलित. चित्तोमा व भूपष्टिचरगेहि समं प्रतिबारकैः सह । इणमत्थं र प्रयोजन । सपहारमो संप्रधारयामः । उपसंपा निरूपिता। सूरिः क्षपकमाश्वासयन्नाह मूलारा—अच्छाहि आस्व तिष्ठ | बीसत्यो विश्वस्तः । उठबादो व्याकुलितचित्तः । इणमटुं इई प्रयोजन तव । संपधारेमो पर्यालोचयामः ।। उपसंपत् ॥ सूत्रतः ॥ १८ ॥ अंकतः ॥ ६ ॥ अर्थ:-हे क्षपक ! अब तुम निःशंक होकर हमारे संघमें ठहरो. अपने मनमेंसे खिन्नताको दूर भगाओ. हम प्रतिचारकोंके साथ तुमार विषय में अवश्य विचार करेंगे. इस प्रकार उपसंपाधिकार समाप्त हुआ. इत उत्तरं पडिन्छा इति सूबपदव्याख्या तो तम्स उत्तमठे करणुच्छाह पडिच्छदि विदण्डू ॥ खीरोदणदव्वुग्गहदुगुंछणाए समाधीए ॥ ५१५॥ आचार्यः करणोत्साहं विज्ञातुं तं परीक्षते ।। जिघृक्षाविचिकित्साभ्यामुत्तमार्थे समाधये ।। ५३४ ॥ इति परीक्षणम् । ३३
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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