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________________ मूलारापना श्रावासः जो . . प्रस्तुनोपसंहारगाधा "इय णिव्वदओ खवयरस होइ णिज्जावओ सदायरिओ ।। होइ य कित्ती पधिदा एदेहिं गुणेहिं जुत्तस्स ।। ५.६ ॥ क्षपकस्य सुख कुर्वन्धो हितशिनाम् ॥ निर्यापकं महाप्राज्ञ तमाहुः सुखकारणम् ॥ ५२२ ॥ ददासि शर्म क्षपकस्य सूरिनिर्यापकः सर्वमपास्य दुःग्वम् ॥ यतस्ततोऽसी क्षपकेण सेव्यः सर्वे भजन्ते सुरवकारिणं हि ।। ५२३ ।। इति सुखकारी। बिजयोदया-त्य पर्व जिव्यपगो निर्वाषकः । नवगस्त क्षपकस्य । मिजावगो होवि निर्यापफो भवति । सवायरिओ सदाचार्यो: निर्यापकत्वगुणसमन्वितः क्षपकस्योपकारी भवतीत्युक्त्वा स्वार्थमपि तस्य सूरदर्शयति । होदि य किती पधिवा भवति च कीर्तिः प्रधिता। पतहिंगुदि शुसस्स आचारपत्त्यादिभिगुणयुक्तस्य ॥ प्रकृतमुपसंहरन्परार्थकरणद्वारेण निर्यापकस्य स्वार्थसिद्धि दर्शयति-- मूलारा--पहिदा प्रथिना प्रख्याता । पदेहिं आचरवस्वादिभिरष्टाभिः ॥ निर्यापकः ।। प्रस्तुत प्रकरणको उपसंहार गाथा----- अर्थ- इस प्रकारसे क्षपकका मन आरहादित करनेवाले आचार्य निर्यापक होसकते हैं अर्थात निर्वापकत्व गुणधारक आचार्य क्षपकका समाधिमरण साध सकते हैं. आचारववादि गुणोंका यहां तक वर्णन किया. इन गुणोंसे परिपूर्ण आचार्य की जगत में कीर्ति फैल जाती है. जैसे इन गुणोंसे आचार्य क्षपकके ऊपर उपकार करते हैं वैसे इन गुणोंसे उनका उज्ज्वल यश भी जगतमें वृद्धिंगत होता है. इय अगुणोदो कसिण आराधणं उवविधेदि । खवगो वि तं भयवदी उवगृहदि जादसंवेगो । ५०७ ११ शिवसुखमनुपममपरुजममलं व्रतवति शमवति हितक्रति सकलं ।। वितरति पतिपतिरिति गुणकलितः शमयमदममयमुनिजनमाहितः ५२४ ७२६
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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