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________________ वृलाराचना ७२२ करंड के समान शोभते हैं. जो जो प्रस्तुत विषय है उसमें सत्, संख्या, क्षेत्र, इत्यादि अनुयोगोंकी योजना कर उसका विवेचन करनेमें इनकी बुद्धि कुशल रहती है. ताकता च मुणी विचित्तसुधारओ बिचित्तकहो || तह य अपायविदह् मणो महाभागो ॥ ९०० ॥ विजयोदयावता वक्ता । कत्ता व कर्ता च विनयवैयावृत्ययोः । विचिचार विचितं प्रथमायोगःकरणानुयोगधरणानुयोगों, दयालुयोग इत्यनेन विकल्पेन । विचिनको विविजायाः कथायाः निरुपणा अस्य स विचित्रकथः । न च विगतत्वात् किमनेन चिचितसुधारो' इत्यनेन ? नैष शेषः । पूर्वसूत्रे शुतकेयली निर्वापकत्वेनोक्तः । अनया तु असमस्त श्रुताचार्योऽपि एवंभूतो निर्वाणको भवतीति व्याख्यायते तेन न पुनरुक्तवा । तद्द य तथा न । आपायविदण्ड रत्नत्रयातिचारकः । महसंपण्णो स्वाभावित्र्या श्रद्धया समन्वितः । महाभागो स्वषशो महात्मा ॥ मूलारा -- बत्ता वक्ता प्रतिपादनकुशलः । कला कर्ता विनयवैयावृत्ययोः । विधित्तसुधारओ विशिष्टं प्रथमानुयोगादिभेदेन चित्रमाश्चर्यकारि श्रुतकेवलिनिय पकैरुक्तं अवधारयता | अथवा विचित्रं श्रुतं परसमयादिशास्त्रं । विचित कथो विचित्रया कथा निरूपकः । न ह्येतयोः पौनरुक्त्यं शक्यं पूर्वसूत्रे हि श्रुतकेबली निर्वार्षिक उक्तः, इह पुनर्युगानुरुपतरोऽपि । आवापायविदण्डू रत्नत्रयातिचारज्ञः । मदिसंपण्णो स्वाभाविकबुद्धिसंयुक्तः । महाभागो स्ववशो महापुण्यो वा । अर्थ-ये आचार्य वक्तृत्व गुणसे युक्त होते हैं. विनय और वैयावृत्य करते हैं. प्रथमानुयोग, करणानुयोग चरणानुयोग और द्रव्यानुयोग इस प्रकारके श्रुतज्ञानके धारक होते हैं. नाना प्रकारकी विचित्र कथायें कहने में प्रवीण रहते हैं. शंका - अंगमुदे व बहुविधे णो अंगसुदे य बहुविधविभत्ते ' इस गाथा में ही वे महाज्ञानी होते हैं ऐसा सूचित होता है, तो पुनः विचित्तसुधारगो' यह विशेषण क्यों ग्रंथकारने गाथामें दिया है ? उत्तर यह है--- पूर्व गाथामें श्रुतकेवली निर्वापकाचार्य होते हैं ऐसा कहा है और इस सूत्र से असमस्त श्रुतज्ञान जिनको है ऐसे आचार्य भी निर्वापक होते हैं ऐसा सूचित होता है. इसलिये यहां पुनरुक्त दोष नहीं हैं. यह निर्वाकाचार्य रत्नत्रय के अविचारोंके ज्ञाता होते हैं, स्वाभाविक बुद्धिमान होते हैं और जितेन्द्रिय महात्मा होते हैं. 1 इसका अश्वासः X ७२२
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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