________________
मूलाराधना
।
भाषामा
७१९
meinamaram
विजयोदया -इति क्रियाभिः पदसंबंधोऽत्र कार्यः । संस्तर भक्तपाने वा । अमगुगणे अमनोखे । कीरतो किय. माणे | कुविदो कुपितो भवक्षपका मेरंवा मर्यादा वा। संथारभत्तपाणे अमाणे वा कीरते कुविदो हवेज्ज खवगो मेरं या भेनुमिच्छज्ज । भेनुमिच्छत् । निरं च कीरते चिराडा संस्तर करणे भक्तपानानयने या । पडिचरगपमादेन वा निर्यापकानां
यावृन्यकरणे या प्रमादस्तन वा कुपितो भवेत् । मर्यादा वा भात्मीयां भत्तुं इत् । सटाणमसंयुगिराहि अगृहीतार्थानां असं वृत्ताभिः परुषाभिर्वा कुपितो भवेत् ॥
निर्वापकत्वमेकादशभिर्गाथाभियांधिल्या सुरादा तननिभिसनिवालादुत्पन्ने क्षपकस्य चित्तसंता निर्यापकाचार्येण भूनेन सता तश्चित्तं निर्वापाणीयमिति गागात्रवेणाभिधत्ते--
लारा - अमणुग अमनो अनामचित्ते । चिर व चिरेण चा शोधभनियमाण इत्यर्थः । कीरते क्रियमाणे । पहिचरमपमाण वैयावृत्त्यकराणां सत्कारणानवधानेन । भेहाणे मागां । असंखुडागाह परमभिः प्रतिकूलाभिर्वाग्भिः ।
जिसका जिसके साथ संबंध है वह दूर भी होगा तो भी वह संबंधी पदार्थ उसका ही माना जायगा इस नीतिके अनुसार यहां क्षपकका वर्णन करते हैं--.'
' अर्थ-क्षपककी शुश्रषा करनेवाले परिचारक संस्ताकी रचना यदि अमनोज्ञ मनोहर-न करेंगे और खाने पीनेके पदार्थ अमनोहर होंगे तो वह क्रोधयुक्त होगा अथवा समाधिमरणके नियमोंका भंग करेगा. किंवा संस्तर करने में यदि देर लगेगी तो भी वह कुपित होगा. आहार और पेय पदार्थ लानेमें देरी लग जाय तो कुपित होगा. परिचारकगण शुश्रूषा करनेमें अलसी बन जाने पर उसको कोष उत्पन्न होगा. अथवा अपनी मर्यादा वह छोड देगा. जिनको सल्लेखनाविधि मालुम नहीं है ऐसे असंयमी जनके परुप-कठोर भाषणसे वह क्रोधयुक्त होगा तो उसको क्षमाधारण कर प्रसन्न करना चाहिये.
HmE
.. सीदुण्हळुहातण्हाकिलामिदो तिनवेदणाए. बा ॥. कुविदो वेज्ज खबओ मेरं वा भेन्तुमिच्छेन्ज ।। ४९७ ॥ घेदनायामसथायां क्षुत्तष्णोष्णहिमादिभिः ।। क्षपका कोपमासाथ मर्यादां विधिभित्सति ॥ ५१४॥
७१९
-
-
-