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________________ GANEMAL मूलाराधना हैं अतः यह कथन असंगतसा दीखता है. उसर-दोका वर्णत करनेवाले भानाने यदि गणका त्याग किया तो वह भी आचार्यका त्याग करेगा ही. अतः इस कथनमें असंगतपना नहीं है. আম্বা संघस्त्यको भवतीत्येतयात्र तह चेव पबयण सबमेव विप्परिणयं भवे तस्स ॥ तो से दिसाबहारं करेज णिहणं चावि || ४९३ ॥ एतस्थाचार्यकं संघो विच्छिनत्ति चतुर्विधः॥ निर्धाटयति वा रुष्टो रोषतः क्रियते न किम् ॥५०८ ।। विजयोदया-तह चेव पपर्ण सबमेष तथैव प्रवचन संघः सर्व पर प्रोच्यते रत्नत्रयं यस्मिनिति शम्मव्युत्प ती संघवाची भवति प्रवचनशब्दः । विप्परिणद विरुद्धतया परिणतं प्रवृतं । ये तस्स भवेत्तस्य । तो ततः। से तस्य । दिसापहरणं करेज्ज कुर्यात् संघः । णिज्जूहण वापि करेज इति परसंबंधः। परित्यागं या कुर्यात् ।। कथं संघः परित्यक्त इत्यचाइ मूलारा--पषयर्ण प्रवचनशब्दोऽत्र संघवाची मोच्यतेऽस्मिन्रत्लत्रयमिति ध्युत्पतेः। विप्परिणद विरुद्धतया प्रवृतं । तो ततो विपरिणमनादेखो से तस्य रहस्यभेदकस्य । हिसापहरणं आचार्यपदभ्रंशनं । णिज्जूहणं निहाटन । दकंप एतस्यापार्यकं संघो विच्छिनत्ति पतुर्विधः ।। निधीटपति वा रुष्टो रोषतः क्रियते न किम् ।। संघका त्याग भी होता है ऐसा वर्णन अर्थ-जिसमें रत्नत्रयका प्रवचन-उपदेश किया जाता है ऐसे जनसमुदायका नाम संघ है. अर्थात मुनि, आर्यिका, श्रावक और श्राविका इनको संघ कहते हैं. यह सब संघ दोष प्रगट करनेवाले आचार्य से विरुद्ध होकर उसका आचार्यपद हरण करेंगे. अथवा उसका त्याग करेंगे,
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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