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फुलाराधना
आश्वास
. . रहस्यस्य कृते भेदे पृथग्भूयावतिपते ॥
- कोपतो मुंचते वृत्तं मिथ्यात्वं वा प्रपद्यते ॥ . . उन्होंने साधुका त्याग किया ऐसा समझना चाहिये. उसका स्पष्टीकरण
अर्थ-आचार्य क्षपकके दोष अन्य मुनिआको कहने पर क्षपक लज्जासे अथवा गवसे ये गुरु मेरेको हितकर नहीं जंचते हैं. यदि ये हितकर होते तो मेरे दोष क्या अन्य जनारे समक्ष ये प्रगट करते ? मैं आजतक ये गुरु मरे बाह्य प्राण है ऐसा समझता था परंतु आज वह समझना निर्मूल है ऐमा अनुभव मेरेको आया है. दोपके कहनेसे गुरूके विषयमें क्षपकके उपयुक्त परिणाम बन जाते हैं. इतना होकर ही रहता नहीं. परंतु वह. क्षपक दोप प्रकट करनेसे कुपित होकर रत्नत्रयका त्याग करनेके लिये उद्युक्त होता है अथवा आचार्यका संघ छोडकर अन्य संघ में प्रवेश करता है. . आत्मपरित्याग ज्याचप्ले
काई समाने कड़े रहो', भडो समापस्यि ।। . उदावेज व गन्छ भिंदज्ज बहेन पडिणीओ ॥ ४९१ ।। मारवत्यथवा तूरि साधुर्भानग्रहाकुलः॥
संसारफाननभ्रान्ति न मन्यते हि मानिमः ।।५०५ ।। विजयोत्या-कोई काश्चत् । रहस्सभेदे कदे रहस्यभेदे रते । परोसं गदो प्रवर्ग गतः । तमायरियं तमाचार्य । उदाज व मारयेत् : गच्छ मिग्रेज्ज गणभेदं कुर्यात् । किमनेन सूरिया वेदरहितेन, यथा ममापराध 'प्रकटितवान् पत्रं युष्मानपि निरपराधान्दूषयिष्यतीति ध्रुवन् । होज्ज पहिणीको प्रत्यनीको भवेत् ॥
कथ यात्मा परित्यक्त इत्याहू -
मूलारा--पदोस प्रवेपं । उहायज मारयेत् । गच्छं मिदेज गच्छं भिवादाचायद्गिणस्य भेदं कुर्यात् । यथार्य विश्वस्तो ममालोचितदोषं प्रकटीकुर्यात्तथा युष्माकमपि प्रकटयिष्यतीति बन्नाचायंगणस्य बिघटनं कुर्यादित्यर्थः । । पाणीगो प्रत्यनीकः प्रतिकूल इत्यर्थः॥
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