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________________ मूलाराधना আম্মা आयरियाणं बीसत्थदाए भिक्खू कहेदि सगदोसे ।। कोई पुण णिहम्मो अण्णेलि कहेदि ते दोसे || ४८८ ॥ विश्वस्तो भापते सर्वानाचार्याणामसीन सः ॥ (?) आचार्यो भाषतेऽन्येभ्यस्ता स्तुवन स्विदधार्मिकः ।। ५०२॥ (?) विजयोदया-आइरियाण आचार्याणां । भिक्षुः । कदि कथयनि । पीसन्धवाए विश्वासन । किं ? सगदोसे स्थातिचारान् । कोई पुण कश्चिन्पुनराचार्य पाशः । गिद्धम्मो निशान्तो यहिभूतो जिनप्रणीतासात् । भणसि अम्येभ्यः । कहेमि ते दोस कथयक्ति आलोचितान्बोषान् । अनेन किलायमपराधः कृत इति। मूलारा-वीसत्वदाए विश्वासेन । कहदि अनेन किलायमपराधः कृत इति परेभ्यः प्रकाशयति । अर्थ-आचार्योंके आगे कोई क्षपक विश्वास रखकर ये आचार्य मेरे दाप अन्योंको नहीं करेंगे एसा विश्वास रखकर कहता है. परंतु कोई आचार्य जिनप्रणीत धर्ममे चाहिर होकर इसने अमुक दोप किया है एसा अन्यजनों को कहते हैं. अन्यजनोंको क्षपकके दोष कहनेवाले आचार्य जिनधर्मभ्रष्ट हो गये ऐसा समझना चाहिये, धपक तो विश्वासम कहता है और ये उसका भंडाफोड सर्व लोक समक्ष करते हैं. ऐमा करना जैनधर्ममें निषिद्ध माना है. तेण रहस्सं भिदंतएण साधू तदो य परिचत्तो॥ अप्पा गणो य संघो मिच्छत्ताराधणा चेव ॥ १८९॥ रहस्यभेदिना तेन त्यक्ताः कल्मषकारिणा ॥ साधुरात्मा गणः संघो मिध्यात्याराधना कृता ॥ ५०३ ।। विजयोदया-तण तेग । रहम्म भिनगा प्रच्छाद्यालोचितवोपप्रकाशनकारिणा । साह माधुः । नदी में परि चत्तो ततस्तु परित्यक्तः । स्वदोषणकाशने कृते मया लज्जावानयं दुःखितो भवति । आम्मान बा घातयत् । कुपितो वा रत्नत्रयं त्यजेत् । इति स्वचित्तेऽकुर्वता परित्यक्तो भवति । अप्पा परिचत्तो, गणो परिचत्तो, संघो परिचत्तो, इनि प्रत्ये काभिसंबंधः। मिच्छत्साराहणा चेष मिथ्यात्याराधना दोषो भवति । RASHTRA
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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