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________________ HERE मूलाराधना आश्वास: मनपर ... . .. लगी तो कर इसका उपशम होगा ऐसा संकल्प करना, अथवा वृष्टिका निवारण करनेके लिये छत्र, चटाई बगरह धारण करना. अभावकाशके अतिचार-सचित्त जमीनपर. ससाहित हरितवनस्पति जहां उत्पन्न हुई है ऐसे जमीनपर, छिद्रसहित जमीनपर शयन करना, जमीन और शरीरको पिच्छिकासे स्वच्छ किये बिना हाथ और पाय संकुचित करके अथवा फैला करके सोना, एक बाजूसे दुसरी बाजूपर सोना अर्थात् करवट बदलना, अपना अंग खुजलाना, हवा और थंडीसे पीढित होनपर इनका कर उपशम होगा ऐसा मनमें संकल्प करना, शरीरयर यदि बर्फ गिरा होगा वो बांसके टुकडस उसको हटाना, अथवा जलके तुमाराको मर्दन करना, इस प्रदशमें धूप और दवा बहुत हैं ऐसा विचार कर संकलश परिणामसे युक्त होना, अग्नि और आच्छादन वस्त्रोंका स्मरण करना ये सब अनावकाशक अविचार है. प्रायश्चित्त तक अतिचार-आकंपित, अनुमानित वगैरे दोप इस लपक अनिचार है. य अतिचार होनपर इसके विषय में मन में ग्लानि न करना, अज्ञानसे, प्रमादसे, तीव कर्म उदयने और आलस्यस मैंने यह अशुभकर्मका बंध करनेवाला कम किया है. मग यह दुष्ट कम किया है एसा उच्चारण करना प्रतिक्रमण के अतिचार है. आलोचना और प्रतिक्रमणके अतिचारोंको उभयतिचार कहते हैं. परिणामों के द्वारा विक न होना यह विवकका अतिचार है. शरीर परसे ममता हटाना व्युत्सर्ग तप है. परंतु ममत्व दूर नहीं करना यह व्युत्सर्ग तपका अतिचार है. अशुभध्यान में परिणमन होना और कायोत्सगके दोष ये नपके अतिचारमें कह गये हैं. छेदके अतिचार-मैं न्यून हो गया हूं एसा मनमें संक्लेश करना. रत्नत्रयको भावपूवर्क ग्रहण न करना यह मूलका अतिचार है. अतिचारके देशत्याग और सर्व त्याग एसे दो भेद हैं. मन, वचन, शरीर, कत, कारित और अनुमोदन ऐसे नऊ भेदोंमसे किसी एकके द्वारा सम्यग्दर्शनादिकाम दोष उत्पन्न होना ये देशत्यागातिचार है और सर्व प्रकार से अतिचार उत्पत्र होना यह सर्वत्यागातिचार है. क्षपकको इसमें अतिचार लग सकते हैं इसलिये वह गुरुके समक्ष इसमें आचोलना करे, पार. ७११
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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