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________________ आश्वासा लासपना SAHEEREDANATAARENA - - - - -- AR - एवं तु भाबसल्लं लज्जागारवभएहि पडिबई ॥ अप्पं पि अणुद्धरियं वदसीलगुणे वि णासेइ ॥ ४६६ ॥ विविध दोषमापन्नः संयमोऽनुड्ते तथा ॥ भयगौरवलज्जाभिः भावशल्ये विनश्यति ॥ ७॥ विजयोदया-पवं नु पचमेव । भावसई परिणामशरल्यं । लज्जागारघभयहि पदिबद्धं स्वापराधनिगद्दनं लज्जातो भवति । भयेन अपराध कथिने कुणपति मुग्यस्यति या मा मामा प्रायश्चिनं प्रयच्छन्तीति । सुतगाः तपस्यायं संसंयत तिन प्रासा: सानियतीस गौरवण च प्रतिबद्धमायाशल्यं । अयं गि अल्पमपि शल्यं अशुद्धरियं अनु रतं । वदसीलगुणे बतानि शीलानि गुणांश्च विनाशयति ॥ मूलारा-पहिबद्धं अत्चगहित वन्मयाकृतं कथं प्रकाश्यते इति लज्जया प्रच्छावित सत्, अयं तपस्वी सुसंयत इति वा, मां महद्वा प्रायश्चित्तं प्रयच्छन्ति इति भयेन वा प्रच्छादितं । अपि अल्पमपि ।। अर्थ-इसी प्रकार भावशल्य भी जीवको दुःखदायक है, भय, गर्व और लज्जासें जब अपराध छिपाते हैं तब भावाल्य उत्पन्न होता है. जैसे लज्जासे अपराध छिपाते हैं वैसे भयसे भी अपराध छिपाते हैं, अपराध कहने पर गुरु मेरा त्याग करेंगे अथवा बडा प्रायश्चित देंगे ऐसे भयसे अपराधोंका कथन करने में क्षपक अनाकानी करता है. मैं वहा तपस्वी हूं ऐसी मेरी जगतमें कीर्ति है वह अपराध कथनसे नष्ट होगी ऐसे गर्वयुक्त विचारसे अपराध निवेदन नहीं करता है. इस प्रकारसे मायाशल्य मनमें उत्पन्न होकर वह बत, शील, और गुणोंका नाश करता है. तो भट्टबोधिलाभो अणतकालं भवण्णए भीमे ।। जम्मणमरणावत्ते जोणिसहस्साउलो भमदि ॥४६७॥ प्रभ्रष्टयोधिलाभोऽतश्चिरकालं भवार्णये ॥ जन्ममृत्युजरायते जीयो भ्रमति भीषणे ।। ४८० ।।
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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