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________________ लाराषना। भाधामः ६५५ व्यवहारो मतो जीवश्रुतज्ञागमधारणा ॥ एतेषां मुत्रनिर्दिष्टा ज्ञेया विस्तरवर्णना ।। १६१ ॥ विययोदया-आगमसुद माणाधारणा य जीदेहि हुंति ववहारा आगमः, श्रुतं, आमा, धारणा जीद इति एयवहाराः पंच । एदास एतेषां भागमादीनांस परूषणा कीरशी? सविश्धारा विस्तारसहिता । सुसणिद्दिष्ठा सूत्रेपु चिरंत नेषु निर्दिष्टा । प्रायश्चित्तस्य सर्वजनानाम प्रतोऽकथनीयत्वाच्छास्त्रांतरे च निर्दिष्टत्यादिह नोच्यते । उक्तं च सयेण घि जिणचयणं सोडव्वं सहिदेण पुरिसेण ॥ छन् सुवस्स हु अन्थो ण होदि सवेण णादग्दो ॥ इति । पंचविधत्वं व्याचष्टे -- मूलारा--आगम एकावशांगो प्रायश्चितं । सुद चतुर्दशपूर्वोक्तं । आणा स्थानांतरीस्थतेम अन्याचार्यण स्थानांतस्वितेन अपाचणायला सारस्य ज्येष्ठशिष्यस्य हस्ते प्रेषितं । धारणा एकाकी जंघायलपरिबीणः संजातदोषस्तत्रब स्थितः पूर्वावधारित प्रायश्चित्त यत्करोति । जीदः वासप्ततिपुरुषजातस्वरूपमपेक्ष्य यदुक्तं सांप्रतिकाचार्य शास्रोत जीद इत्यन्ये । वित्थारा विस्तारात । विस्तरमाश्रित्य । परूवाणा निर्णय: । मुत्तणिचिठ्ठा सूत्रेषु चिरंतनेषु निरूपिता बोद्धच्या। अन तु नोक्ता मायश्चित्तस्य सर्वजनानामग्रतोऽकथनीयत्वात् ।। उक्तं च सम्वेण चि जिणवयण सोदञ्च सड्डिदेण पुरिसेण ।। छेदमुदत्स दु अत्यो ण होदि सम्वेण सोवबो । पांच प्रकारके व्यवहार कोनसे और उनका विस्तार कोनसा है इस प्रश्नका उत्तर आचार्य कहते हैं अर्थ--आगम, श्रुत, आज्ञा, धारणा और जीद ऐसे प्रायश्चित्त के पांच भेद है. इनका सविस्तर वर्णन प्राचीन आचार्योंने सूत्रग्रंथों में सविस्तर किया है. प्रायश्चित्तका वर्णन सर्व लोगोंके सामने करना योग्य नहीं है. अन्य शास्त्रांतरमें इसका खुलासा किया है अतः यहां हम उसका निरूपण नहीं करते हैं. अन्यत्र प्रायश्चित्त के विषय में ऐसा उल्लेख मिलता है-- श्रद्धावान सर्व पुरूप जिनवचन सुन सकते हैं. परन्तु प्रायश्चित्तशास्त्रका अर्थ सर्व लोगोंको जानने का अधिकार नहीं है. ६
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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