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________________ आश्वासः मूलाराधना मरने की अवस्थामें वह दीन पुरुष अपना मुख उघाडकर, नेत्रोंकी टकटकी लगाता हुआ, रोनेसे जिसके नेत्रों पर सूजन और लालपना आगया है ऐसा होता हुआ अपनी प्राणप्यारीको छोडकर चल बसता है. स्फटिकमणिऑकी माला जैसा समीपके पदार्थका गुण ग्रहण करती है वैसे त्रियों के शरीर समीपस्थ व्यक्तिके गुणोंफा ग्रहण करता है. संध्याकालीन मेघाकी पंक्ति लालरंग मनोहर दीखती है परन्तु उनका यह रंग शीघ्र ही नष्ट होता है. वैसे खियाका प्रेम उत्पन्न होकर शीवही विलयको प्राप्त होता है. अर्थात् आज एक पुरुष पर उनका स्नेह जम जाता है तो कल ये दूसरोंपर प्रेम करेगी. स्त्रीकी प्राप्ति होना भी दुर्लभ होता है. स्त्री, वस्त्र, गंध, माला वगरह पदार्थ मिलनेपर समर्थ लोक जबरदस्ती से हर लेते हैं. इससे मन मय उक्त होता है । के खर्य मेरे को प्राप्त हुए है परन्तु कोई इसको ले तो नहीं जायगा ऐसा भय मनमें उत्पन्न होता है, ऐसा भय होनेसे ये पदार्थ आत्माको सुखदायक होते नहीं. इनकी प्राप्ति के लिए खेती वगैरह छह कर्म करने पड़ते हैं. इन पदकर्मोसे संपत्तिरूपी फल प्राप्त होगा ही ऐसा नियम नहीं है और इनमें परिश्रम बहुत करना पड़ता है. इनमें हिंसादिक पापक्रिया करनी पड़ती है और ये कर्म अन्तम दुर्गति की प्राप्ति में कारण होते हैं ऐसा उपदेश देकर बहुश्रुतज्ञ आचार्य क्षपकको भोगोंसे विरक्त करते हैं. शरीरका भी वास्तविक स्वरूप दिखाकर आचार्य विरक्त करते है यह शरीर अपवित्रताका निधान है. अर्थात् इसके संपूर्ण अवयव अपवित्र पदार्थ से ही बने हैं. यह शरीर आत्माके ऊपर लदा हुवा मानो वाझाही है. इसमें एक भी पदार्थ सारयुक्त नहीं है. यह अनेक संकटों से घिरा रहता है. रोगरूपी धान्यकी उत्पत्तिका यह स्थान है अर्थात इसमें अनेक रोग उत्पन्न होते हैं. वृद्धावस्थारूपी पिशाचिनीका यह श्मशानगृह है. मान्यकुलमें पैदा हुआ, विशालकीर्तियुक्त, और मुणी ऐमा भी मनुष्य दरिद्री होनेपर इस शरीरका पोषण करने के लिये. नाच कर्म करता है, श्रीमानोंके आगे दौडता है. उनके संदेश एक स्थानसे दुसरोंको पोहोचाता है. और उनका उच्छिर भोजन खाता है. इस विषय में पूर्वाचार्य एसा कहते हैं इस शरीरके अंदर, बाहर और मध्य में भी कुछ भी सारभूत वस्तु नहीं है. जिसको मन स्वीकार करेगा अर्थात् जब हम देहके म्बरुपका मनमे विचार करते है तो उसमें कोई सारभून पदार्थ दीखना नहीं. इसवास्ते || सारज्ञ विद्वान् तुच्छजनोंने कामपूर्तिकं लिये पसंद किये हुए इस देह की इच्छा नहीं करते है.
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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