________________
मूलाराधना
૬.
यद्यपि आयु शब्द सामान्यका वाचक है तथापि यहां दीर्घायुष्यका वाचक माना है. अन्यथा आयुष्य मात्र तो संमारी जीवोंको सुलभ हैं ही.
देश, कुल, जाति, नीरोगता वगैरह की माप्ति होनेपर भी बुद्धिका लाभ होना बडा कठिण है. बुद्धिका अर्थ यहांपर परलोक की प्राप्ति करा देनेवाली बुद्धि ऐसा है. अर्थात् परलोकमें इस आत्माकी हित करनेवाली बुद्धि दुर्लभ है. सामान्य ज्ञान प्राप्त होना कुछ कठिन नहीं है. जैसे मेघपटलसे आच्छादित होनेपर सूर्यका प्रकाश भृतलपर नहीं आता है, वैसे ज्ञानावरणीय कर्मके उदयसे आत्माकी ज्ञानशक्ति आच्छादित होती है. मिध्यात्व कर्मका उदय होनेसे ज्ञानमें विपरीतपना होता है. अर्थात् पदार्थका सथा स्वरूप जाननेमें असमर्थ होता है. उसका विपरीत स्वरूप समझ लेता है.
आत्मा नामक कोई पदार्थ ही नहीं है. अतः यह शुभाशुभ कर्मका कर्ता हैं ऐसा मानना निर्मूल है. शुभाशुभ कर्म सुख और दुःखरूपी फल उत्पन्न होता है. और यह आत्मा उसका अनुभव लेनेमें लीन होता है. यह कहना या मानना निःसार है, आत्मा पाप या पुण्य कर्मके वश होकर परलोककी प्राप्ति कर लेता है यह वचन भी मिश्रया है. इस विषय में अन्यत्र ऐसा कहा है-परलोक नहीं है. आत्मा और पाप पुण्य नहीं है. धर्म और अधर्म नामकी चीज भी नहीं है. क्या किसीने स्वर्ग देखा है ? अथवा भयंकर दुःख देनेवाले नारकियों के निवासस्थल भी देखे हैं ? कर्म बंध, और मोक्ष क्या चीज है ? अर्थात् कुछ भी नहीं है. बंध और मोक्ष न होने से तपश्चरणादिक करना व्यर्थ है. प्राप्त हुए सुंदर स्त्री वगैरह पुरुषोंका यथेच्छ सेवन करना चाहिए. क्योंकि प्रत्यक्ष को छोडकर अप्रत्यक्ष चीजों की अभिलाषा करना बुद्धिमानका कर्तव्य नहीं हैं.
इस विषय में कोई विद्वान ऐसा कहते हैं- सोलह वर्ष की स्त्री और वीस वर्षका जवान पुरुष इनका हाव भावपूर्वक कटाक्षपात, हास्यमिश्रित भाषण और रतिक्रीडा यही स्वर्ग है इससे और स्वर्ग नामकी चीज ही नहीं हैं.
यह श्री मकरध्वज की जयपताका है. इससे संपूर्ण पदार्थों की संपत्ति प्राप्त होती है. स्वर्ग और मोक्षकी इच्छासे जो दुर्बुद्धि लोक इस स्त्रीका त्याग कर बनमें प्रयाण करते हैं वे स्त्रीका त्याग करनेके अपराधसे दंडित कर दिये जाते हैं. कितनोंका मुंडन किया जाता है. कोइयोंको रक्तवस्त्र पहराया जाता है, कोई जटायुक्त और कोइ
४
६६४