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________________ भूलाराधना आश्वास रेखाके समान क्रोध परिणाम, लकडीक समान मानपरिणाम, गोमूत्राकारके समान मायापरिणाम और कीच डके रंगसमान लोभपरिणाम ऐसे परिणामोंसे मनुष्यपनाकी प्राप्ति होती है. जीवघात करनेपर हा मेने दुष्ट कार्य किया है, जैसे दुःख वा मरण हगको अप्रिय है, संपूर्ण प्रापिओको भी वह अप्रिय है. जगतमें अहिंसा ही थेष्ट व कल्याण कारिणी है. परंतु हम हिमादिकांका त्याग करनमें असमर्थ हैं. अट परदोषोंको कहना, दुसरोंके सदगुण देखकर मनमें द्वेष करना, असत्यभाषग करना यह नजनोंका आचार है. माधुओंको अयोग्य ऐसे निंद्य भाषण और खोटे कामों में हम हमेशा प्र . इसलिये इममें गज्जनपना कैसा रहेगा ऐसा पश्चाताप करना. दुसरोंका धन हरण करना यह शवग्रहार करने से भी अधिक दुग्यदायक है. व्यका विनाश होने सर्व कुटुचका ही नाश होता है इसलिये मैने दूसरोका धन हरण किया यह अयोग्य कार्य किया है रेरो परिणाम होना. हमने रखी गैरह का हरण किया यह बहुत अयोग्य कार्य हमसे हुआ, हमारी स्त्रीका किसाने हरण करने पर जैसा हमको अतिशय कष्ट होता है वैमा उनको भी होता है यह अनुभवसे प्रसिद्ध है. ऐसे परिणाम होना, गंगादि नदिया हमेशा अपना अनंत जल लेकर समुद्र में प्रवेश करती हैं तथापि समुद्रकी तृप्ति होती ही नहीं. यह मनुष्यप्राणी भी धन मिलनेस तृप्त नहीं होता है. इस तरहके परिणाम दुर्लभ है. (सत्पुरुष के मुखमें कठोर वचन, सूर्यमंडलमें अंधकार, तीनक्रोधी मनुष्यमें दया, लोभी मनुष्यमें सत्यभापण, अभिमानी मनुष्य में परगणोंका स्तवन, स्त्रीमें मायारहितपना, दुष्टोंमें कुतन्त्रता, कपिल, बद्ध बगैरह आताभासोके मतमें बस्तुके सत्यस्वरूपका ज्ञान ये जैसे दुर्लभ हैं. वैसा मनुष्यत्वकी प्राप्ति होना दुर्लभ है.) देश, कुल, रूप: आरोग्य, दीर्घायु, बुद्धि, शास्त्रश्रवण, ग्रहण, श्रद्धा, और संयम ये उत्तरोत्तर दुर्लभ हैं. यहां आचार्य उत्तम देश जन्म होना दुर्लभ है इस विषयका वर्णन करते हैंकर्मभूमिज, भोगभूमिज, अन्तीपज और संमम्छिम ऐसे मनुष्योंके चार भेद हैं. ढाई द्वीपोंमें पांचभरत क्षेत्र, पांच ऐरावत क्षत्र और पांच विदेह क्षेत्र ऐसी पंधरा कर्मभूमियां है. पांच हैमवत क्षेत्र, पांच हरित्र क्षेत्र, पांच देवकुरु, पांच उसर कुरु, पांच रम्यक क्षेत्र और पांच हरण्यवत क्षेत्र एसी तीस भांगभूमिया है.
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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