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________________ मूलाराधना अर्थ--सूत्रज्ञ आचार्य क्षपककी जो चाह है रमकी पर्णता कर उसकोला सिर करते हैं. उसके देहकी बाधाओंको मिटा देते हैं, मधुरभाषण, उपकरणदान और प्राचीन सल्लेखनाधारकोंकी कथा कहना इत्यादि उपायोंसे उसकी धर्मध्यानमें एकाग्रता करते है. आपास १२ प णिज्जूढं पि य पासिय मा भीही देइ होइ आसासो। संघेइ समाधि पि य वारेइ असंवुडगिरं च ॥ ४६३ ।। वैरगावृत्यकरैस्त्यक्तं मा भषीरिति भाषते ॥ निषिध्य संमृति तस्य समाधान करोति सः ॥१५६।। विजयोदया -णिज्जूट गिय पानिय निर्यापर्यतिभिः परित्यक्त राष्ट्वा किं भवता परीपहासचनेन चलचि. सेनामाको त्यत्तोऽस्पस्माभिरिति माभीहि बंद मा भैपीरित्यभयं ददाति । होदि भवति । संधतेच आसासो आयासः । संधी समाधिपि य रत्नत्रयकारयमबिग्छिन् । वारेदि असवुडगिरंच वारयत्य संवृतानां वचनं, नेयं वक्तव्यो भयाद्रियं महात्मा । कोहि नामारमिघ शरीरं आहारं दुस्त्यजं त्यक्तुं सम इति प्रोत्साहयन । मूलारा-जिजून निर्यापयतिभिः परित्यक्तं । पामिय दृष्ट्वा । मा भीही मा भैपीरित्यभयं ददाति सूरि: । होदि चासामो भवति पाधामः । दारकम्य नया गर भीतिदानात | संधेदि विच्छिन्नं पुनः मंधने । अमबुद्धगिरं अमवताना बधनं वारयति । नवं वक्तव्यो भवद्भिरवं महात्मा | को हि नामायमिब शरीरमाहारं च दुस्त्यज त्यक्तु शक्नुयात् । इति प्रोत्साहयत् ।। तथा--- अर्थ-शुश्रूषा करनेवालोन यद्यपि क्षपकका त्याग किया हो तो भी उसको देख करके हे क्षपक : तुम । परिषह सहन नहीं करते हो और तुम्हारा मन बहुत चंचल है, हमारा नुमसे कुछ प्रयोजन नहीं है ऐसा कहकर शुभूपा करने वालोंने तुम्हारा त्याग किया है. तो भी तुमको डरना नहीं चाहिये ऐसा बोलकर आचार्य उसको अभय करते हैं. उसको आश्वासन देने हैं, उसको रत्नत्रयमें स्थिर करते हैं. जो लोक कटु बोलकर क्षपकका उत्साह भंग करते हैं उनका आचार्य निवारण करने हैं. अर्थात् यह क्षपक महापुरुष है इसके प्रति एसा कटु भाषण करना योग्य नहीं ६३९
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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