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________________ आश्वास भूलाराधना यनमभ्युपगच्छेत् ! अप्पाउगं व कई कद्देज 1 अप्रायोग्यां या कथा कथयत् । क्षाकस्याशुभपरिणामविधायिनी । रूहरं वा स्वैरं वा जपेज्ज जपेत । आराधकस्पाग्नत इदं युक्तं न नेणामिलाये गदेशा मूलाग–महणं पयामेज्ज अपकम्न्य संन्यास विधि लोकस्याग्रे प्रकटयेत् । समगुजाणेज्ज गंधादिक सेवमान भयकमनुमन्येत । अप्पाउन अयोग्यं । को कां । सइई यथेष्टम् ।। अर्थ--आचाररहित आचार्य क्षपककी सल्लेखना लोकमें प्रगट कर देगा. अथवा लोगोंको सुगंधित पदार्थ और पुष्प लानेके लिए कहेगा. क्षपकके परिणामोंको बिघाडने वाली कथायें कहेगा अथवा क्षपकके आगे योग्यायोग्यका विचार न कर चाहे जो पकने लगेगा. अमिपाय यह है कि ऐसे आचार्यको क्षपकके कल्याणकी पर्वा नहीं रहती है. ण करेज सारणं वारणं च खवयस्स चयणकप्पगदो ॥ . उहज वा महा खबयरस वि किंचणारंभं ॥ १२६ ॥ साररत्नम्र प्रवर्तनं सारणं, दोषेभ्यो वारणं निवर्तन मिति यावत।। सारणां वारणां नास्य कुरुते च्यवनस्थितः ॥ क्षपकस्य महारंभ कंचिस्कारयते गणी ।। ४३१ ॥ मिजयोदया- करज्जन कुर्यात् । किं सारण रत्नत्र वृत्ति । वारणं च निषेधं न कुर्यात् । तेभ्यः प्रच्यवमाना । खरगरस क्षपकम्य । कः मणमण्यगदो पवनकलग्गतः 1 उग्ज वा महलं भारंभं कारयेहा महान्नं वाग्भे पट्टकशाला, पूजा, यिमाने घा । ग्यगस्त विक्षपफस्थापि किंचन ।। मुलारा-मार रलाये पचतनं । वारण सनत्रया:यन्यवमानस्य निषेधः । हेज फारयेन् । किंगारंभ कमपि एदृकशालापूजारथिकादिक भावदाम्यापार ।। अर्थ -भ्रद आचार्य क्षषक रत्नत्रयमें प्रवृत्त होगा ऐसा उपदेश नहीं करता है. तथा यदि वह रत्नत्रयसे न्युत होने लगा तो उसमें स्थिर भी नहीं करता है. बडा आरंभ करावेगा अर्थात् पट्टकशाला, पूजा, विमान इत्या ६३७
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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