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________________ पलाराधना आश्थामा वे क्षपकको निर्दोप और आगमोक्त आचरण प्रदान करते हैं. अर्थात् क्षपकसे निर्दोष आचरण करवाते हैं. उसके आचरणों में दोप दिखाकर उसको शुद्धाचरणी बनाते है. ६३५ निर्यापकस्य सूरेराचारपत्वे अपकस्य गुण ध्याचऐ पंचविधे आचारे समुज्जदो सव्वसमिदचेट्ठाओ ।। . सो उज्जमेदि खवयं पंचविधे सुद्द आयारे ।। ४२३ ॥ उद्यतः पंचधाचार यः कर्तुं समितक्रियः ।। क्षपकः पंचधाचारे प्रेर्यते तेन सर्वदा ।। ४३६ ।। विजयोदया-पंचविधे आयारे समुज्जदो पंचप्रकारे आवारे समुद्यतः । समिदसम्यन्चेवाओ सम्यक् प्रवृत्ताः सर्वाश्च यस्य सः। सु उज्जमेदि सुष्ठ उद्योग कारयति । खवग क्षपक । क्व पंचविध आवार । पंचाचारोघतः क्षपर्क सत्र उपमयतीति आइमूलारा--समिदसध्वचिढाओ सम्यक्प्रवृत्तसकलगममादिकियः ।। निर्यापक आचार्य यदि आचारवान होंगे तो उनसे क्षपकको क्या लाभ होगा इस प्रश्नका उत्तर अर्थ-जो आचार्य दर्शनाचारादि पांच आचरों में तत्पर रहते हैं, अपनी सब चेष्टायें जो समितीओंके अनुसार ही करते हैं ये क्षपकको भी पांच आचारों में निदोपतया प्रवृत्त करते हैं. या आचारवान भवति तदाश्रयणे दोषमाह सेज्जोवधिसंथारं भत्तं पाणं च चयणकप्पगदो। उवकष्पिज्ज असुद्ध पडिचरए वा असंविग्गे ॥ ४२४ ॥ अशुद्धमुपधि शय्यां भर पानं च संस्तरम् ।। सहायानप्यसधिनान्विधत्ते च्यवनस्थितिः॥४३७॥
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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