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________________ मूलाराधना आश्वास ६२९ यदि वे भद्र हो अर्थात दुध खभावक न हो तो वे स्वयं मुनिओंको देखकर भय से भागकर दावित होते हैं । स्वयं गिर पड़ते हैं अथवा धक्का देकर मुनिऑको मारते हैं. इधर उधर कूदते हैं.. वाघ, सिंह बगैरह मांसभक्षी प्राणी, वानर वगैरह प्रागी राजा के घरमें बंधनसे यदि मुक्त होगये होंगे तो उनसे मुनिका बात होगा और वे यदि मद्र होंगे तो वे इधर उधर भागने पर भी मुनिको बाधा होन की संभावना है. मनुष्योंसे भी राजाके घरमें मुनिओंको दुःख भोगने पड़ते हैं, उनका वर्णन-. राजाके घर में तलवर. म्लत, दाम, दासी बगैरह लोक रहते हैं. इन लोगोंमे राजगृह व्याप्त होनेस वहां प्रवेश होने में कठिनता पड़ती है. यदि मुनिने राजाके घरमें प्रवेश किया तो वहां उनान दाग वगरह लोक उनका उपहास करते हैं. उनको निंद्य शब्द बोलते हैं. कोई उनको अंदर प्रवेश करने में मनाई करते हैं. कोई उनको उल्लंघते हैं, वहां अंतःपुरकी स्त्रियां यदि कामविकार से पीडित होगी अथवा पुत्रकी इच्छा उनको हो तो मुनिका जबरदस्तीसे उपभोगके लिय प्रवेश करवाती है. कोई व्यक्ति राजाके घरके सुवर्ण रत्नादिक चोर कर यहां मुनि आया था उसने चोरी की है ऐसा दोपारोपण करते हैं, यह राजा मुनिओंका भक्त है ऐसा समझकर दुष्ट लोक मुनि वेष धारण कर राजाके यहां प्रवेश करते हैं और वहां अनर्थ करते हैं, जिससे मुनिओको बाधा पोहोंचनेकी हुन संभावना रहती है. अर्थात् राजा रुष्ट होकर अविवेकी बनकर मुनिओंको दुःख देता है. अथवा अविवेकी दृष्ट लोक मुनिओंको दोष देते हैं उनको मारते हैं. ऐसे इतर व्यक्तिओंसे उत्पन्न हुए दोपोंका वर्णन किया है. अब राजाके घरमें प्रवेश करनेसे मुनि स्वयं कोनसे दोप करते हैं इसका वर्णन करते हैं राजगृहमें जाकर मुनि आहार शुद्ध है या नहीं इसका शोध नहीं करेगा देखभाल न कर लाया हुआ आहार ग्रहण करता है. विकार उत्पन्न करनेवाले पदार्थ सेवन करने से इंगाल नामक दोप उत्पन्न होता है, अथान मे पदार्थ भक्षण करने में लंपट होजाना है. दुर्दैनसे वहाँकी रत्नादिक अमूल्य बस्तु चुरानेके भाव उत्पन्न होबार उसको उठा लेगा. अपने योग्य स्त्रीको देखकर उसमें अनुरक्त होगा. राजाका वैभव, उसका अंतःपुर, वेश्या वमरहको देखकर निदान करेगा. ऐसे दोपोंका संभव जहां होगा ऐसे राजाके घरमें आहारका त्याग करना चाहिये.
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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