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________________ मूलाराधना आश्वास ६२८ अर्थात ---श्री आदिनाथ तीर्थकर और श्री महावीरस्वामी इनके तीर्थमें सोलह प्रकारके उद्देश दोषोंका परिहार करके आहारादिक ग्रहण करना चाहिए ऐसा कहा है यह दूसरा स्थितिकल्प है. सजाधर कल्पका वर्णन-~ मेज्जाधर शब्दके तीन अर्थ है--जो वसतीकाको बनाता है वह बनाई हुई बसतिकाका संस्कार करनेबाला, अथवा गिरी हुई सखिकाको सुधारनेवाला. किंवा उसका एक भाग गिरगया हो तो उसको सुधारनेवाला वह एक, जो बनवाता नहीं है और संस्कार भी नहीं करता है परन्तु यहां आप निवास करो ऐसा कहता है वह, ऐसे तीनोंको शय्याधर कहते हैं. इनके आहारका, और इनके पिच्छिका, बगैरह उपकरणका त्याग करना यह तीसरा कल्प है. यदि इन शम्याधगंक यरमें मुनि आहार लेंगे तो धर्मफलके लोभमे ये शन्याधर मुनिओंको आहार दवे हैं ऐसी निंदा होगी. जो आहार देने में असमर्थ है, जो दरिद्री है, लोभी कृपण है वह मुनिओंको बसतिदान न देवे. उगले बारिका दान किमान गारा गुनिलो आश्रय दिया परंतु आहार नहीं दिया ऐसी लोग निंदा करते जो बसतिका और आहार भी देता है उसके ऊपर मुनिका स्नेह भी होना संभवनीय है. क्योंकि उसने मुनिपर बहुत उपकार किया है. अब उनके यहां मुनि आहार ग्रहण नहीं करते हैं. राजाके यहां आहार नहीं लेना यह चौथा स्थितिकस्य है. इक्ष्वाकुवंश, हरिवंश इत्यादि कुल में जो उत्पन्न हुआ है, जो प्रजाका पालन करना. उनको दुष्टोंसे रक्षण करना इत्यादि उपयोंसे अनुरंजन करता है उसको राजा कहते हैं. राजाके समान जो महानदीका धारक है उसको भी राजा कहते हैं, ऐसाँके यहां पिड ग्रहण करना वह राजपिट है. इसके तीन भेद है--आहार, अनाहार और उपधि, अन्न, पान, खाद्य और स्वायके पदार्थाको आहार कहते हैं. तृण, फलक, आसन वगैरह पदाथोंको अनाहार कहते हैं. पिंछी, वस्त्र, पात्र उनको उपधि कहते हैं. राजपिडका ग्रहण करने में क्या दोष है ? इस प्रश्नका उचर ऐसा है-आत्मसमुत्थ और परसमुत्थ एसे दोगांके दो भेद है. ये दोष मनुष्य और नियचोंके द्वारा होते हैं. तिथंचों के ग्राम्य और अरण्यवासी ऐसे दो भेद है. थे दोनो प्रकारकं तिर्यच दुष्ट और भद्र ऐसे दो प्रकार के हैं. घोडा, हाथी, भैंसा, मेंहा, कुना इनको ग्राम्य पशु कहते हैं. ये पशु राजाके घरमें प्रायः होते हैं. यदि ये दुष्ट स्वभावके होंगे तो उनसे मुनिओंको बाधा पोहोचती है. ६२८
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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