________________
मूलारापना।
अाश्वासा
६२२
उत्पन्न होता है. परिग्रहरहितको किसी में भी शंका उत्पन्न होती नहीं, परंतु सचेल मनुष्य अपनमाथ आनेवाले मनुष्यको अथवा किसी दुसरे मनुष्यको देखकर उसपर विश्वास नहीं करेगा. यह कौन है ? यह क्या करेगा एसी शंका उसके मनमें अवश्य उत्पन्न होगी.
अप्रतिलेखना नामक गुणभी निष्परिग्रहतासे पास होता है. चौदा प्रकारके उपाधिओंको ग्रहण करनेवाले । श्वेताम्बर मुनिओंको बहुत संशोधन करना पड़ता है परंतु नग्नता धारण करनेवाले दिगंबर मुनिओंको इसकी आवश्यकता रहती नहीं.
अचेलतामें परिकर्मवर्जन नामका गुण है. उष्टन करना, अलग अलग करना, सीना, बांधना, रंगाना इत्यादिक कार्य वस्त्रसहित मनुष्यको करने पड़ते हैं. परंतु निर्वस्त्र मनि इनसे रहित होते हैं. स्वतके पास बस प्रावरणादिक हो तो उसको धोना पडेगा: फटनेपर सीना पडेगा, ऐसे कस्सित कार्य करने पड़ते हैं. बस्त्र समीय होनेसे उससे अपनेको अलंकृत करनकी इच्छा होती है और उसमें मोह उत्पन्न होता है,
अचेलतामें लाघव नामक गुण है. निर्वस्त्र मुनि खड़े होना, बैठना, गमन करना इत्यादिक कामे वायुक सगान अप्रतिबद्ध रहते है, अत: उनमें लाघव गुण रहता है. सबस्त्र मनुष्यमें यह गुण रहता नहीं.
तीर्थकराचरित नामका गुणभी अचेलतामें रहता है. उत्तमसंहनन-वजर्षभनाराच संहनन, और विपुलशक्तिके धारक ऐसे तीर्थकर मुक्तिका मार्ग सर्व भव्याको प्रगट करते हैं. जितने तीर्थकर हो चुके और होनवाले हैं चे सब वस्त्ररहित होकरही तप करते हैं. मेरुपर्वत वगैरह स्थानपर जो जिनप्रतिमायें हैं वे और तीर्थकरोंके
अनुयायि गणधरभी निर्वस्त्रही है. उनके सर्व शिष्यमी वस्त्रराहतही होते हैं अतः अचेलत्व यह मुनिऑका प्रथम 'स्थितिकल्प सिद्ध हुआ.
जिसने आपना शरीर वस्त्रसे चेष्टित किया है वह जिनश्वरके समान शरीरपरसे मोहका त्यागकर और आपने दो भुज नचि लंबायमान करके निश्चल हो जिनेश्वरका स्वरूप धारण नहीं करते हैं. नमतामें अपना बल और वीर्य प्रगट करना यह गुण है. परंतु जो सवस्त्र है वह सामर्थ्ययुक्त होकर भी अर्थात् परीषद सहन करनेका सामर्थ्य होनेपर भी उनको नहीं सह सकता है। इतने गुणोंको देखकर श्रीजिनेश्वरने आगममें अधेलताका वर्णन किया है।
।
MARA
।