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________________ राइन ६२१ वह परिग्रहरहित आसक्ति रहित होता है. बस्त्र समीप रखनेसे वह फटने पर उसको सीनेका विचार उत्पन्न होता है. सीनेके लिये सूची समीप रखनी पंडगी. कपड़ोंके तुकडे पास रखने पडेंगे. सूई, दोरा, कपडेके टुकडे इनका अन्वेपण करनेमें चित्त व्याकुल हो जावेण स्वापकों का ही नहीं, परंतु निगमुनीको ऐसी व्यग्रता नहीं रहने से उनके ध्यानस्वाध्याय निर्विघ्न होते हैं. वत्यागसे सूत्रस्वाध्याय व अर्थस्वाध्याय में निर्विशता प्राप्त होती है. स्वाध्याय और ध्यानका हमेशा अभ्यास होता है. इसलिये ग्रंथत्याग-परिग्रहत्याग यह गुण है, जैसे तंदु लके ऊपरका छिलका निकालने से वह निर्मल होता है वैसे नाझ वस्त्रादि परिग्रहका त्याग होनेसे अभ्यंतर क्रोधादि परित्याग होकर आत्मा निर्मल होता है. इसलिये बाह्य परिग्रहत्याग अभ्यंतर परिग्रह दूर करने का मूल कारण हॅ. छिलकेसे अलग किया हुआ तंडलधान्य अवश्य निर्मल होता है. परंतु छिलके से युक्त तण्डुलकी शुद्धि भजनीय है. इसी तरह निर्वख मुनि अवश्य निर्मल होते हैं. वस्त्ररहित मनुष्य में रागद्वेपरहितता नामक गुण रहता नहीं है. सस्त्र मनुष्यका मन सुंदर वस्त्र दीखनेपर अनुरक्त होता है. व अपने असुंदरवस्त्रका द्वेष करने लगता है. वाह्य पदार्थों के आश्रयसे रागद्वेष उत्पन्न होते हैं. परंतु परिग्रह पास न रखनेसे उनकी उत्पत्ति नहीं होती है. शरीरपर अनादर करना यह गुण हैं. शरीरपर प्रेम करनेसे ही मनुष्य असंयम व परिग्रह में प्रवृत्त होता है. निर्वस्त्र मुनि वात, का ताप, शीत वगैरह से उत्पन्न हुई पीडा सहन करते हैं. इस लिये वे शरीरपर निरादर रहते हैं यह सिद्ध होता है, निष्परिग्रहता से स्ववशतागुण प्राप्त होता है. देशांतरको जाते समय इस गुण के प्रभावासे किसी के सहायता की अपेक्षा नहीं रहती है. संपूर्ण परिग्रहका त्यागी वह मुनि विक्रमात्रका स्वीकार करता हुआ पक्षीके समान विहार करता है. परंतु वस्त्रधारी मनुष्य अन्य मनुष्यकी सहायताकी अपक्षा करता हुआ संयमका कैसा पालन कर सकता है. अर्थात् उनसे संगम पालन होता नहीं. वस्त्रत्यागस मनकी विशुद्धि प्रगट होती है, कौपीन, वस्त्र इत्यादिकसे गुह्य आच्छादन करनेवालेकी भावशुद्धि नहीं जानी जासकती है. परंतु जो बखरहित है उसका निर्विकार देह देखकर उसका वैराग्य स्पष्टतया स्पष्ट जान सकते हैं. इसलिये अचलतासे मनोविशुद्धि नामका गुण प्रकट होता है ऐसा समझना योग्यही है. इस अंचलतासे निर्भयता गुण प्राप्त होता है, जो वस्त्रसहित है उसको यह मेरा वज्र चौरादिक लोक हरण करेंगे, मरेको ठोकेंगे, वांगे, ऐसी भीति उत्पन्न होती है. भययुक्त मनुष्य क्या नहीं करेगा? अचेलतासे सर्व मनुष्यों में विश्वास आश्वास ४ ६२१
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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