SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 629
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मूलाराधना आश्वासः रित्राचार है. चार प्रकारके आहारोंका त्याग करना, अल्प भोजन करना, दाना, पात्र, त्याविका परिमाण करना, रसोंका त्याग करना, शरीरको आतापनादि योग और आसनादिकसे क्लेशयुक्त करना. एकांत स्थानमें रहना इन सब प्रवृत्तिओंको तप आचार कहते हैं. तपश्चरणमें अपनी शक्ति नहीं छिपाना यह वीर्याचार है. ऐसे आचारोंके पांच भेद हैं. ६८९ । प्रकारांतरेण आचारवत्त्य कथयति दशविहलिदिकप्पे वा हवेज्ज जो सुछिदो सयायरिओ || आयारत्रं खु एसो पत्रयणमादासु आउत्तो ॥ ४२० ॥ दशधा स्थितिकल्पे वा सुस्थितो गतदूषणे ।। आचारी कथ्यते युक्तः सूरिरागममातृभिः ।। ३३२॥ विजयोदया-शविदलिदिक वा दशबिर्धे स्थितिकल्पे धा। हयेज्ज जो सुटिदो सया भयेधः सुस्थितः सदा। बायरिओ आचार्यः । आयारवं खु आचारवान् । एसो पषः । पषयणमावासु आउत्तो प्रवचनमालकासु समितिषु गुप्तिषु चायुक्तः॥ आचारवत्वमेव भग्यतरणोपविशतिमूलारा--ठिदिकापे आपरणत्रिशेपे । पवयणमादासु प्रवचनमापु समितिगुप्षुि । आउत्तो कृतोद्योगः ।। अन्य प्रकारसे आचारबत्व गुणका निरूपण करते हैं-- अर्थ--जो दशप्रकारके स्थितिकल्पोंमें स्थिर है वह आचार्य आचारवत्वगुणका धारक समझना चाहिये। यह आचार्य नि गुसि और समितिओका जिनको प्रवचनमाता कहते हैं धारक होता है. अभिहितकल्पनिर्देशार्था गाथा आनेलकुदेसियसेज्जाहररायपिंडकिरियम्मे ॥ जेद्रपाडिकमण वि य मासं पज्जो सवणकप्पो || ४२१ ॥ ६००
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy