SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 618
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मुलारापना শাখা ५५८ करने के लिये अवश्य प्रयत्न करता है. आत्मशुद्धि अर्थात आत्माकी शुद्धि होती है, संतोशपरिणाम नष्ट होते है. अथवा विहार करना क्लेशदायक है ऐसा जो समझता है वह गुरूका अन्वेषण करनेके लिये क्यों कष्ट सहेगा. परंतु जिनको जिनको आराधनासिद्धि करनेकी इच्छा है चे कष्ट सह कर गुरूका अन्वेषण करते हैं. और इस कार्यमें वे कष्ट समझने नहीं. अज्जबगुण-गुरूका अन्वेषण करने के लिये विहार करनेसे आर्जव गुणकी सिद्धि होती है अर्थात् कपटका त्याग होता है. क्योंकि गुरूका शोध कर उसके आग अपने दोपोंको मायाका त्याग कर प्रगट करनस आर्जरगुणकी प्राप्ति होती है. दोष प्रगट करनेसे अभिमानका भी परिहार होकर मार्दव गुणका लाभ होता है, शरीरका परित्याग करनेकी बुद्धि होनेसे लावच गुणका लाभ होता है. मैं कृतार्थ हो चुका ऐसा विचार मनमें आता है इससे तुष्टि गुण भी व्यक्त हुआ, गुरुका शोथ करनेके लिये प्रयाण करते समय प्रल्हाद अर्थात् हृदयमें सुख उत्पन्न होता है. आजतक मैने स्वपरोपकार करनेमें काल व्यतीत किया अब मैं आगेका सर्व काल मेरे कार्यमें ही अर्थात् चार आराधनाओंकी सिद्धीमें हि व्यतीत करूंगा देसी पितासे उसके सदमे सुरू उत्पन्न होता दस्थ गर्वन्येषणार्थमायात रष्ट्चा तरणयासिनो सामाचार कम ब्याहरति - आएसे एज्जंतं अब्भुढ़िति सहसा हु दळूणं ॥ आणासंगबच्छछदाए चरणे य णादुजे ।। ४१० ॥ आलोक्य सहसा यान्तमभ्यत्तिष्ठन्ति संयता: आज्ञासंग्रहवात्सल्यप्रणामकृतयोऽस्त्रिलाः ॥ ५२१॥ विजयोदया - आरस प्राघूर्णफं । पतं आयांतं । दण दृष्ट्या । सहसा अदभुट्ठिति शीघ्रमभ्युत्थानं कुर्वन्ति यतयः । भाणासहवछल्लदाए. अभुको समणो सुत्तम्वविसारदो उन्नासेज्ज इति जिनामासंपादनाथ आगच्छत संग्नहीतं । यसलत्रयाच नमिचरणे यणाई र चरित्र समाचारक्रम नदीयं ज्ञातु च अभत्थान कुन्ति । कचिपाठा "चण य णाप " रति वरणावगमनार्थ तत्र ग्राह्यम् ।। गुन्वेिपणार्थमाचातं दृष्ट्वा तद्गणवासिभिः करणीयं समाचारक्रम गाथात्रयेण निरूपयतिमूलारा-आएसं प्राघूर्णकं । एज्जत आगच्छंत अब्भुटेंति अभ्युत्थान कुर्वति । वास्तव्या मुनयः । आणासंगह ५९ -
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy