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________________ आश्वास .. ...: . . : " मना सननि गुरु एदिएं प्रायधिसमित्यारेकायामाच .... माण मं गतिव्वसदाओ ॥ ....... ... ... ..: - महिंदु मा नेणाराहओ भवदि ॥ ४०८ ॥ जना मापनः द गत्यसो यतः॥ मन म निराकाषु भवत्याराधकस्ततः । १९ ।। .:..:.::... यानि पनि मायागन्य मरताधिरिनि मत्वा शस्य. .. ... ..... ... ... ... ... ... चिताममाता दुःखदातला चावलोक्य, नथेन्द्रिय ......... ....... :: ... ..... गाडगीनामा मकाल रम्नत्रयाराधना श्रद्धा व . . . . . . . . . . .. . गानां पता नीता अक्षा यस्य रलत्रयायध...... ....: नाबानि सो नण अहो होदि स तेन आराधको भवति ।। Hit. I... विभिनयामधस्वं स्वादियाशंकायामाह -- I I, ""मो सामानल्य रत्नत्रयाशुद्रिकृत् । उबेग शरीरोद्रेयसुख चासारत्व माना नित्य रहा उत्कटमारगीतिकरस्नत्रयाराधनारथिः । संवेगादित्रयं गच्छति यः ........... . मामा अदा यस्यनि प्रथम सोधिहे गुद्धिनिमित्तम् । नयामकथा पायश्चितका आचरण नहीं किया है वह मुनि आराधक -- .::.:.: . ' : मना करना है वह मुनि मायारी समझना चाहिये. मायाशल्यके .: . ...... मा मनमें विचार कर शल्यका उद्धार करने का जिसने विचार किया है. iiii , अपवित्र, निःमार और दुःस्त्र देनेवाला है, इंद्रियसुख अनुप्तिजनक को . ..... को उप" रहिम युआ है और जिसकं मनमें रत्नत्रयविषयक श्रद्धा ....:: कलिय गुरुक पास जा रहा है एम निकी यदि मार्ग, वचन
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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