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________________ भूसाराधना - rera..."unia विजयोदया-बालोचणापरिणतो वापराधकथनायद्वितचिनः । गुरसीएमागच्छन्द्रनो नाकार कुर्यात् । आराधगो होइ आराधको भवति ॥ आलोचणाएरिणदो सम्मं संपञ्छिदो गुरुसयासं ।। जदि आयरिओ अमुहो हवेज्ज आराहओ होइ ।। ४०६ ॥ आलोचनामवृत्तस्य गच्छतः सूरिसन्निधि । यद्यप्यस्त्यमुत्रः सारस्तथाप्याराधकास्ति सः ।। ४१७ ।। विजयोदया-तथा शालोचनापरिणतः गुर्यन्ति प्रति अपनी नवनि । यक्षाचायः धक्तमा जान। आलोचणापरिणदो सम्म मपन्छिदा गुरुसयाम ।। जदि आयरिओ कालं करेज आराहा होइ॥४.७॥ आलोचनामवृत्तस्य गच्छत्तः सूरिसन्निधि ।। यधपि म्रियते सूरिस्तधाप्याराधकोस्ति सः ॥ ४१८ ।। विजयोदया--भाचार्यः कालकरणऽप्याराधको भवति इति सूत्रार्थः ॥ तन्मृतोऽप्याराधकोऽस्तीत्यामूलारा--- स्पष्टाः ॥ अर्थ-- मैं अपने अपराधोंका स्वरूप गुरूके चरणसमीप जाकर कहूंगा एमा मनमें विचार कर निकला हुआ मुनि यदि मागमही मरण करे तो भी बह आराधक होता है, अर्थ-मैं अपने अपराध परगणक आचाय के पास कहूंगा इश आभित्रायम गमन करनेवाल आचाय यदि मार्गमे ही मूकावस्थाको प्राप्त होजावे तो भी वे आराधक होते हैं. अथात् यदि वे व्याघजजरित होकर बोलन में असमर्थ हो गये तो भी वे आराधक होते हैं. अर्थ----आलोचना करनेक उद्देशस गुरुके समीय निकले हुए आचार्य यदि मागमें स्वर्गवासी हो जाचे तो भी वे आराधक माने जाते हैं, a -au-. --"Siwakar ASHATAARAMADHAN ..hern-...'
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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