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________________ भावास - RATA गोगनपर दिनभोगियतिविम्युच्यने । अन्ये तु अंतित गंभोगिय ...... ... ... . ..आयनः विधी मानायकराधिकनिमः ।। स्थंडिलझायी यायाद....... ... ...... ifiमादुर मत्वः ॥ ॥ करात्रतनस्सगे .... . .. .::::: :" । महिवतो आक्तिरहिनः । सम्बन्ध सर्वनांतराल :: ... ... ... नकल हुने प्रावण का कार्यक्रम बताते हैं - और प्रबल ऐमा वा मुनि नियापकाचार्य का नियबहार : एकत्रिप्रतिमाकपाल का रूप कहते हैं--तीन उपवास करने के अ नरसी मारा मानना थान, पूर्व दिया, उत्तरदिशा अथवा चैत्य-जिनदारिम राम दोनो तरणो मे का प्रमाका नखकर नामका अग्रपर बह पति अपनी दृष्टि निबनकर han मम छोड रेजामन का त्यग करता हुआ मनको एकाग्र करना है, देवा महब्ब, हिमें और इसके द्वारा किया दुधा अगम नटन करना है. वह मुनि मयस आगे गमन करता भी भीनमत मिश्रकीकर बायामही योदय होने तक स्थिर रहता है. यह एक रामिप्रतिमासलो मति नाम र दोन कोश गमन करता है और जहा आहार मिलेगा ऐसे क्षेत्र, वसतिका ने आकर बरसा । पदि मार्ग व हा सापीरूरी अथवा अर्धपोरूपी के समय मंगल करके आगे रापर करता याय मि. प्रशासनिक पनि मागिका. श्रावक, बाल, मध्यम और वृदोंको पूलकर निर्यापकार का मामला परता. KE) HARI गई यहां जो स्थंडिलका अन्वेषग करता है. अर्थात शरीर शोभन में जिम जानुक स्मार्ट का सन्देशमा करना है, वह स्थंडिल शायी मुनि है. सभोगकशल--सहायता करवाय यतिसम्म किरा . किंवा योग्य यतिका आश्रय करनेवाला अथवा योग्य यतिको स्वयं अरने में ओ मबह वा नगन बाल माना जाता है, मार्गमें ग्राम, नगरादिकमें रहनेवाले यति और - - -
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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