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________________ मलापत्रमा भावार एवं दोसा गणिणो विसेसदो होति सगणवासिस्स || जिसका वि तारिमयस्स होंति पाएण ते दोसा।। ३९६ ॥ ने दोषाः सन्ति संघ स्वकीये सरेः साधोस्ताहशस्यापि यस्मात् ॥ तस्मात्यक्त्वा स्वं समाधानकांक्षी धीरः संघ स प्रयात्यन्यदीयम्॥४०७॥ विजयोदया-दे दोसा गणिणो विसेसदो होनि पते बोषा विशेफ्नो भवन्ति स्थगणे परमसः। भिक्षुरूप त्रि तारिसयरस मिक्षोरपिताम्म उपाध्याय स्य, प्रवर्तकस्य या भवन्ति प्रायेण ते दोषाः ।। प्रागुक्कान्दोपानाचार्यश्यानिक दर्शयन उपाथ्यावादेरपि वगणवासिनः प्रायोवृत्त्यां तान्प्रदर्शयति समास विमान।। नारिनवम्म नाम कात्म कणिसशग्य उपाध्यायम्य, प्रवर्तकस्य वेत्यर्थः । अनु मिन्सुर ६ का मामय यतनावशाम्य बनगवा लिन इचानटे ॥ अर्थ-- जो आचार्य स्वगायमें रहते हैं उनको ये दोप होंगे तथा जो आचार्यके समान उपाध्यायमुनि, तथा प्रवर्तक मनि है भी यदि वगणम ही रहेंगे तो उनको भी प्रायः इन दोषोंका संभव होगा. गणिणो धिमेलवकल्प था भवन्ति प्रायासिनः प्रायोपुरण ---- - एदे सब्वे दोसा ण होंति परगणणिवाप्तिणो गणिणो । तम्हा सगणं पयहिय वच्चदि सो परगणं समाधीए ॥ ३९७ ।। मनि दोषा न गणेऽन्यदीये सतिष्टमानस्य ममत्वीजं ॥ ममाधिनाया ममत्यहानेबिना निमित्तन तो निवृत्तिः (१)।०८।। विजयादया- सब दीख तिन सय दोषाने भवन्ति । परगणणियासिनो गणियो पर गायनियासिनो गंगाधरम् । नाम्पा नियन्य सजना समाय॥ गनापामा रन समाधिमा पारवान्माणस्य गम्यवानुवर्णयति.... गलास --- प जहिय मर्यात्मना स्यात्या । जो आचार्य अपना गण छोडकर परगणमें समाधि मरण के लिये प्रवेश करते हैं उनको इन दोपोका संबंध नहीं होगा है. इस लिये आचार्य समाधिसिध्यर्थ परगणका आश्रय लेते हैं. ५८८
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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