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________________ SATRE मश्विासः मूलाराधना कारुण्यं विवृणोतिमूलारा-कोलुमिग-सदन्यमारटनं । सकरुणभारटनम ॥ कोलुणिम दोषका विवेचन ... अर्थ--शुल्लक, ब्रह्मचारी वगैरह गृहस्थ, ब्रह्मचारिणी, आर्यिकाय आचार्यको गमाधि मग्णक लिय उद्यमी देखकर शोक करेंगे जिसको देखकर आचार्य ध्यान में विघ्न उपस्थित होगा और परिणामोंमें अशांति होगी. इमलिये आचार्यका स्वगणमें रहना निषिद्ध माना है. भत्ते वा पाणे वा सुस्सूसाए व सिस्सबग्गम्मि । कुव्वंतम्मि पमादं असमाधी होज गणदियो ।। ३५५ ।। गणिनः प्रेष्यशभूषाभक्तपानादिकल्पने ।। स्वाणयसमाधान शिध्य प्रमायति ।। ४.१ ।। विजयोक्या-भत्ते वा पाणे या भक्के पाने या शुश्रूषायां था प्रमाद शिष्यवर्ग पुर्यति गणपतरसमाधिभवति ।। ध्यानविनासमाधिदोष व्याचष्ट्र-- मूलारा- सुस्ससाए पर्युष्टौ संवाहनादिकायां । कुव्यताम्म कुर्वति सति । असगाही आत रोई वा ध्यान । यदि स समाधिनिर्विकल्पयोगः परमानन्दः स च सबिकल्पकयोगलक्षण ध्यानपूर्वकः । अतः दिप्यवर्गप्रमाददर्शनान ध्यानत्रिघातम्तनः बसमाध्यभावः इति पूर्वसत्रित दोषद्वयं व्याख्यातं प्रक्षिपत्तश्यम् ॥ अर्थ - आहारक पदार्थ, पानके जलादिक पदार्थ और शुभपा इम्तपादादि मर्दन वगैरह काम यदि शिष्यवर्ग प्रमादी चने अर्थात् इन कायोंमें यदि उन्होंने ध्यान नहीं दिया तो आचार्यक मनमें शांतिका अभाव होगा आर्तध्यान अथवा दुर्ध्यान उत्पन्न होगा.
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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