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________________ मूलाराधना आश्वासः ५८६ didatefitute सिणेह त्यस्प व्याख्या उड्डे सअंकघट्ठिय बाले अज्जाउ तह अणाहाओ ।। पासंतस्स सिणेहो वेज्ज अच्चंतियविओगे ॥ ३९३ ॥ बालाः स्वांकोचिता दृष्टा वृद्धधा विह्वलविग्रहाः॥ अनाथाश्चार्यिकाः स्नेहं जनयंति गुरोस्तदा ॥ ४०४॥ विजयोदया-उन्ने सबकहिय इत्यादि वृद्धान्यप्तीन्स्यांकमाईतयालान यतीस्तथा आर्यिकाः, अनाधाः पश्यतः स्नेहो भषेदात्योतिके वियोगे । स्नेहं ब्याहरति-- मूलारा-सयंकवादिदे बाल मोत्संगतिबालाम । बास्यात्प्रतिपालिता] । अगाहाओ अनाथाः । अकमीतअधिओए सर्वथा विरहे । पुन: संगमाभावान ।। स्नेह दोपका विवेचन-- अर्थ--घृद्ध मुनि, जिनका बाल्यावस्थासे पालन किया है ऐसे पालमुनि, अनाथ एसी आर्यिकार इनको देखनसे अब इनका मर साथ अत्यंत वियोग होगा ऐसा विचार यदि स्वगण में आचार्य रहेंगे तो आप बिना नहीं रहेगा जिससे उनके असमाधिमरणकी संभावना होगी. अतः म्बगणमें उनका रहना निपिद माना गया है, ५८ कोटुगिण इतपत हााचार - खुड्डा य बुड्डियाओ अज्जाओ बि य करज कोलुणियं ॥ तो होज जहाणविग्यो असमाधी बा गणधग्स्स ।। ३२४ ।। आर्थिकाः क्षुल्लिकाः क्षुल्लाः कारुण्यं कुर्वते यतः ।। ध्यानार्वन्नोऽसमाधिश्च जायते गणिनस्ततः ।। ४०५॥ विजयोदया-बुड्डा य खुडियाओ शुलका, आर्याः युरारटनं । ततो ध्यान विनोऽसमाधिर्धा गणधरस्य भवतीति ॥
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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