SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 605
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Terease का प्रकारान्तरसे भार संघमें फैल लाराधना भाश्वासः इसही दोपका प्रकारान्तरसे वर्णन - अर्थ-टोटे मोटे रोग वगेरह विकार संघमें फैल जानेपर अपना शिष्यवर्ग :ख संतापादिसे पीडित जा देखकर आचार्यको दःख होगा, परिणामीकी एकाग्रता नष्ट होगी, और उनमें स्नेह होगा, इसलिये समाधिमर गोयमी आचार्य इनके परिहार अन्य संघमें जाते हैं. होगी, और उ तण्डापिस महणिजसु वि सगणम्मिणिभओ संतो ॥ जाएज व सेएज्ज य अकप्पिदं किं पिवीसत्थो ।। ३९२॥ परीपहेपु विश्वस्तः स्वगणे निर्भयो भवन || ... .... पाकिंचनाकल्यं सेवते मापते स्फुटम् ।। ४०३ ।। 11- हादिन्न, मापस वि सिदिभु पापंदाधु सहनीय प्यपि । सगरम शिम्भो संतो बग| Him Pron य शप लापने वादेयते चा। अग्यि अयोग्य किंचित्प्रत्याख्यातमशन पानं था। बीमायोनिय स्नात्याराविरहितः । निर्भयारष्ट्र । मला- णिलो निति सन सूरिः | सापज याचत | अकप्पिय अकल्प्य अयोग्यं । किंपि प्रत्या ख्या पानमशनादिक वा । बीमत्यो विश्रतः । अकीर्तिभयलज्जारहितः ॥ अर्थ--समाधिमरणोयुक्त आचार्यने प्यास, भूख वगैरहका दुःख सहन करना चाहिये. परंतु वे अपने मंघमें रहनेपर निर्भय होकर आहार, जल: वगैरह पदार्थोंकी याचना करेंगे. अथवा स्वयं आहारादिकाका सेवन कोंग. 'अयोग्य अधीन जिनका त्याग किया है ऐसा भी आहार और पानके पदार्थ भय, लज्जा छोड़कर खाने लग जायेंगे इस लिय उनका अपने संघमें रहना आमममें निषिद्ध माना है. ५८५ - -
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy