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बुलाराधना
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कल पूर्वार्द्धन व्याचष्टे
पडिचोदणासहणदाए होज्ज गणिणो वि तहि सह कहीं ॥ परिदावणादिदोसा य होज्ज गणिणो व तेसिं वा ॥ ३८९ ॥ वाक्याक्षमायामसमाधिकारी सूरेः समं तेः कलहो दुरन्तः ॥ दोषास्ततो दुःषादाः भवन्ति सर्वेष्वनिवारणीयाः । ४०० | विजयोत्रया-पडिचोदणासह गुरुशिक्षासनेन । होज कोरिदियो शुकादिभिः सह गणिनः । परिदावणादिशेसा होञ्च दुःखादिदोषा भुलकादीनां वा कलह ॥
कलादिदोषद्वयं व्याख्याति -
मूलाग-पडिचोयणादाण गुरुशिक्षणासहिष्णु हो भवेयुः । कलह दोषका पूर्वार्द्ध में वर्णन करते हैं.
अर्थ – स्वगण में रहनेसे आचार्य के शिक्षावचन सुनकर क्षुद्धकादिक मुनि क्रुद्ध होकर उनसे लड़ेंगे अथवा क्षुल्लकादिकोंसे आज्ञाभंग होनेसे आचार्यका कलद होना संभवनीय है. आज्ञाभंग होने से आचार्य के मन वेड संताप वगैरह विकार उत्पन्न होंगे अथवा ये आचार्य हमको हमेशा उपदेश देते रहते हैं आज्ञा करते हैं ऐसा विचार कर क्षुल्लकादिक दुःख, संताप, शोकादिकसे पीडित होंगे.
परिदावणादीयइत्येतत्सूत्रपदं प्रकारांतरेणापि व्याचष्टे - कलहपरिदावणादी दोसे व अमाउले करतेसु ॥
गणिणो वेज्ज सगणे ममतिदोसेण असमाधी ॥ ३९० ॥ गणेन सार्क कलहादिदोषं कुर्वत्सु बालादिषु दुर्धरेषु ॥ गणाधिपस्य स्वगण वृत्ते ममत्वदोषादसमाधिरस्ति ।। ४०१ ।। विजयोदया कलपरियणात्री दोसे व कई परितापादि वा मधुकर
मह
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भग
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