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________________ मूलाराधना पाढमिति निगम गणो मंगळमेतबद्धचोऽस्माकम् ।। गुरुगुणपरिणवभावः सोऽण्यानंदतस्त्यजति । अर्थ-हे प्रभो! आपका यह उपदेश हमको अतिशय मंगलकारक सुखदायक और पाप नाशक है ऐसा मुनिगण बोलते हैं और गुरुके गुणोंमें एकाग्रचित्त होकर नेत्रोंसे आनंदाथ गिराते हैं. आबासः ५७५ भगवं अगुग्गो मे जं तु सदेहोब्ब पालिदा अम्हे ॥ सारणवारणपडिचोदणाओ धण्णा हु पाति ॥ ३७७ ।। अयं नोऽनुग्रहो पूर्वी यत्स्वांगमिय पालिताः॥ सारणावारणादेशा लभ्यते पुण्यभागिभिः ।। ३८४ ॥ विजयोदया-भगवं अणुग्गडो मे भगवन्ननुग्रहोऽस्माकं तु सदेदोव्य पालिदा अम्हे यत्स्वशरीरमिव पालिता वयम् | सारणवारणापनियोयणाओ एवं कुरुत, माकुरत इति शिक्षा | धपणा दुपार्वति धन्याः प्राप्नुवन्ति । मूलारा--भाग सादरला . असा । सदेई व स्वदेहमिय । सारणवारणपडिचोयणाओ एवं कुरु मैय कुरु इत्यादिशिक्षा | अर्थ हे भगवन् ! आपने स्वदेहके समान हमारा पालन किया है. आपने हे मुनिगुण! तुम अमुक कार्य करो और अमुक कार्य मत करो ऐशी शिक्षा दी है. ऐसी शिक्षा भाग्यवंतको ही मिलती है. अन्योंको नहीं. अम्हे वि खमावेमो जं अण्णाणापमादरागेहिं ॥ पडिलोभिदा य आणा हिदोवदेस करिताणं ।। ३७८ ॥ क्षमयामो वयं तयद्रागाज्ञानप्रमादतः ।। आदेशं ददसामाज्ञा भवतां प्रतिकूलिता ॥ ३८५ ॥ विजयोदया-अम्हे वि समायमो वयमपि समां प्राहयामः । ज अपणाणापमादरागेईि 'अण्णा अज्ञानात् ।
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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