SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 593
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मूलाराधना अर्थ--अन्य मनुष्यका खल्प भी गुण सत्पुरुष ग्रहण कर उसको बा बनाते हैं. अर्थात अन्य जनोंका अल्प गुण भी दीख पडा तो ये बहुत खुश होकर उसकी बहुत प्रशंसा करते हैं, जैसे पानी में तेलका एक बिंदु यदि पर गया तो उसके आश्रयमे वह विस्तीर्ण होता है. जैसे सत्पुरुषसे प्रशंसित हुआ अन्य मनुष्यका गुण भी जगतमें फैलता है. अल्पगुणकी भी प्रशंसा करनवाल सत्पुरुर क्या परदोषोंका कथन करेंगे? कभी भी नहीं करेंगे. आश्वास ५७३ एसो मध्यसमासो तह जतह जहा हवेज्ज सुजणम्मि ॥ तुझं गुणेहिं जणिदा सच्चत्य वि बिस्सुदा कित्ती ॥ ३७४ ॥ ग्राह्यस्तथोपदेशोऽयं सर्वो युष्माकमंजसा ॥ यथा गुणकृता कीर्तिलोंके भ्राम्यति निर्मला ।। ३८१ ।। बिजयोदया-एप सर्वस्योपदेशस्य सक्षपः । तद जतह तथा यतध्वं । जहहरेष्ज़ सुजणम्मि यथा भवेत्सुजने। नाद गुनि जणिदा सम्बन्ध वि चिरकुदा कित्ती । माकं गुर्जनिता सर्वत्रापि विधुता कीर्तिः ।। मोपदेशसंग्रहमान मुला-सव्यसमामा सर्वस्य उपदेशस्य संक्षेपः। घेत्तबो ग्रहीतव्यः । सुजगम्मि सुजनमध्ये । उक्तं च-- ग्राहस्तथोपदेशोऽय सर्वो युष्माकर्मजसा । यथा गुणकना कीर्तिलोंके भ्राम्यति निर्मला ॥ अर्थ-हे मुनिगण इस संपूर्ण उपदेशका सार यह है कि, आप हमेशा इस प्रयत्नमें रहो कि जिससे आपकी कीर्ति मुजनोंमें प्रसार पावेगी. और तुम्हारे गुणोंसे सर्वत्र तुम्हारा जमत्प्रसिद्ध यश फैल सके. --- ---- शासी संपतानां कीर्तिरिति शंकायामुच्यते एम अखडियसीलो बहुस्सुदो य अपरोवताबी य ॥ चरणगुणसुछिदोत्तिय धण्णस्स खु घोसणा भमदि ।। १७५ ।।
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy