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मूलारापना
HOTATISRO
आभास
शोकद्वेषासुखायासबरदार्भाग्यभीतयः ॥
विशिष्टानिष्टया पुसां जन्यते परनिंदया । ३७७ ॥ परनिंदायां दोघानाह -- मूलारा-सुजणषेस्सा सुजनानां द्रुष्या ।।
अर्थ-परनिंदासे आयास, वैर, भीति, दुःख, शोक वगैरे दोष उत्पन्न होते हैं. यह परनिंदा पाप और द्रोहको उत्पन्न करती है, परनिंदा करनेवाला मनुष्य सुजनको अप्रिय होता है,
परनिंदा किमर्थं क्रियते गुणित्ये स्थापयितुमात्मानमिति चेत्, तसिराकरोति-...
किच्चा परस्स जिंदं जो अप्पाणं ठवेदुमिच्छेज्ज ॥ सो इच्छदि आरोग्गं परम्मि कडुओसहे पीए ॥ ३७१ ॥ उत्थाएणिपुरस्माननिदां विभाग ।।
अपरेणौषधे पीते स नीरोगत्वमिच्छति ॥ ३७८ ॥ पिजयोदया-किचा परम्स णि परनिदा कत्चा | जोधप्पाणं उमिज । य श्रीमान गणितार्या स्थापयितु मिच्छत् । सो इच्छदि स वांछति । किं भारोमा नीरोगता । परम्मि कहुगोसधे बाद कटुकांपधायिभ्यन्यस्मिन् ॥
गुणवत्वं स्थापयितुमात्मानं परनिंदा कुर्वतः प्रत्यवाय दर्शयति । मूलारा-स्पष्टम् ।
स्वतःका गुणिपना सिद्ध करने के लिये परनिंदा करते है. ऐसा कहना योग्य नहीं है--यह बात आचार्य दिखाते हैं--
अर्थ-जो परनिंदा करके अपनेको गुणी सिद्ध करना चाहता है. वह मनुष्य दुमरोंको कडवी औषधी पिलाकर स्वयं निरोगी होना चाहता है ऐसा मानना चाहिये. जो औषधी खा लेगा वहीं नीरोग होगा उसी तरह जो गुण प्राप्त कर लेगा बही गुणी होगा. परनिंदासे गुणी बननेका प्रयत्न करना यह उलटे रास्तपर चलकर स्वस्थानको पोहोंचनेका प्रयत्न करनेके समान है.
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