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मूलाराधना
आश्वासः
मूग-शाम इहलोके सौख्यसौभाग्यादिहेतुत्वभ्रंशनेन निष्फलीकरण । परलोके च नीचैर्गोबनिमित्तत्वे. नानिष्टफलसंपादकल्यापादनाम । उम्भावर्ण प्रदानम् ।
अर्थ .. यचोंक द्वारा स्वगुणोंका वर्णन करना यह मानो उनका नाश ही करना है. अपने शुभ आचरणसे ही गुणोंका कथन हो जाता है. शुभ आचरणसे ही गुण मगट होते हैं. अपने गुणोंको प्रगट करनेकी जिसको इच्छा है वह सदाचारमें संपूर्ण प्रवृत्ति करे, ऐसी प्रवृत्तिया ही उसके गुणोंका प्रकाशन करेंगी.
घायाए अकहंता सुजणो चरिदेहिं कहियगा होति ।। विहितगा य सगुणे परिसा लोगम्मि उवरीव ॥ १६६ । अजल्पतो गुणान्वाण्या अल्पंतश्चेष्टया पुनः ।।
भवन्ति पुरुषाः पुंसां गुणिनामुपरि स्फुटम् ।। ३७१ ।। विजयोदया-बायाप, अकहिता पाचया अधयंतः । सुजणे साधुजनमध्ये । चरिदेहिं वि कड़ितगा य चरितैः प्रतिपादयन्तः । सगुणे आत्मीयान्गुणान् । पुरिसाणं पुरिसा लोगनिम उपरीव होति । पुरुषाणामुपरीच भवन्ति पुरुषा लोके ॥
धरितः स्वगुणप्रकाशनस्य माहात्म्याहमूलारा-पुणे साधुजनमध्ये | उसीव उपरीव ।
अर्थ---जो मुजनों में बचनोंके द्वारा अपने गणोंका वर्णन न कर कवल अपने चारित्रोंसे करते हैं वे पुरुष जगत सर्व पुरुषों में श्रेप्रपना पाते हैं..
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सगुणम्मि जणे सगुणो वि होइ लहुगो णरो विकस्थितो॥ सगुणो वा अकहितो वायाए होति अगुणेसु ॥ ३६७ ॥