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________________ मूलाराधना भाश्वासः चिजयोदया-संतो विद्यमानाः। यकदितयस्स अभाषमाणस्य । पुरिसस्स पुरुषस्य । गुणा प विय जस्संति नैच नश्यति । यदि न स्वयं स्तौति स्वगुणान प्रख्यातिमुपयांतीत्येतच नेति वदति । अकाईसस वि अस्तुबतोऽपि गावाणो ग्रहपनेः आदित्यस्य । णो जगविस्तुदो तेजो न जगसि विश्रुतं तेजः॥ स्वगुणारत बने यदि ने मनरानि नलः स्तोमा: स्टून : करगिया!... मूलारा ...गहवतो आदित्यस्य अपने गुणोंकी स्तुति न करनेमे यदि उनका विनाश होगा तो उनके अविनाशाय उनका वर्णन करना योग्य होगा परंतु गुणवर्णन न करनेघर भी वे नष्ट नहीं होते हैं ऐसा कथन-- अर्थ--वर्णन न करने पर भी मनुष्यके गुणोंका नाश नहीं होता है यह बात अनुभव सिद्ध है, स्वगुणाकी स्तुति न करने पर भी वे प्रख्यात होते हैं. क्या सूर्यकी प्रशंसा न करने पर भी जगतमें पूर्वका तेज प्रसिद्ध नहीं होता है? आत्मन्यसता गुणानां उत्पादकं स्तवनमिति बचनं न गुज्यत इत्याह ण य जायंति असंता गुणा विकत्थंतयस्स पुरिसस्स ॥ धति हु महिलायतो व पंडवो पंडवो चेव ।। ३६२ ॥ कथ्यमाना गुणा वाचा नासंतः सन्ति देहिनः । पंडका न हि जायन्ते योषा वाक्यशतैरपि ॥ ३६७|| बिजयोदया- य जायंति असता गुणा नैवोत्पद्यन्ते असंतो गुणाः । विकत्यतयस्स स्तुपतः धिति नितरां महिलायतो व वामलोचनेत्र आननपि । पंगो पंडगो चेव पंढः पंढः पय भवति न युषतिः ।। आत्मन्यगरा गुणानामुत्पादकं स्तवनमिति युज्यत इत्याह-- मुलाया-महिलायनो नहिलाचरम | पंडयो पंदः ॥ गुण नहीं होनेपर भी स्नान करनेस व उत्पन्न होने हैं यह कहना भी अयोग्य है । अर्थ--जो पुरुष अपनी स्तुति करता है उसमें गुणोंकी उत्पत्ति नहीं होती है, जैस कोई पंद स्वीके ५६५
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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