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________________ मूलाराधना आश्वासः अर्थ-हे मुनिगण । तुम अपनी प्रशंसा करना हमेशाके लिये छोड़ दो, अपनी प्रशंसा आपही करनेसे सत्पुरुपोंके द्वारा वर्णन किया गया तुम्हारा यश नष्ट होगा. जो मनुष्य अपनी प्रशंसा करता है यह जगतमें तृणके समान हलका होता है. ५६५ संतो वि गुणा कत्थंतयस्स जस्संति कंजिए व सुरा || सो चेव हयदि दोसो जसो थोएदि अप्पाणं ॥ ३६० ॥ स्वस्तवन गुणा यांति कांजिकैनव सीधुनि ।। स दोषः परमस्तेषां कोपः संयमिनामिव ।। ३६५ ।। विजयदया-नती वि विद्यमाना अपि । कन्धनयमस ममले गुणा इति कथयतः । गुणा सम्मति गुणा नश्यति। जिगाव सूरा साँवारण सुरव । सोचव पर दोसो स एव भवति दोपः । सो थोपदि अपाणं यात्मानं मताति सः ॥ स्वयं स्वगुणकीननं दोषनाह मुलाराविकहतयरस एते मे गुणा इति कथयतः । ऋजिए. कांजिकेन । व यथा । कजिएणेति पाठ यथेत्यध्याहारः । श्रोएदि स्तौति ।। अर्थ-जैसे कांजी पीनेसे मदिराजन्य उन्माद नष्ट होता है वैसे अपनी प्रशंसा अपने मुहसे करनेवाले मनुष्यके गुण नष्ट होते हैं. इस वास्ते अपनी स्तुति करना यह दोष है. स्वगणमत बनाकरण यदि ते नश्यति तर्हि स्तोतयाः स्युर्ग तथा नश्यति इत्याचप्ठे-... संतो हि गुणा अकहितयस्त पुरिसस्स ण वि य णरसंति ॥ अकहितस्स वि जह गहबइणो जगविस्मुदो तेजो ॥ ३६१ ॥ अनुसोऽपि गुणो लोके विद्यमानः प्रकाशते ॥ प्रकटीक्रियते केन विवस्वानुदितो जने ॥ ३६६ ॥
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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