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मूलाराधना
आश्वास
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हे मुंनिवृंद ! चारित्रहीन मुनि बहुत हैं ऐसा समझकर उनका आप आश्रय मत करो और सद्गुणी मुनि एकही है ऐसा समझकर उसको मत छोडो ऐसे अभिप्रायका कथन--
___ अर्थ-यहां पार्श्वस्थ शब्दसे चारित्रहीन मुनिओंका ग्रहण समझना चाहिये अर्थात् चारित्रहीन मुनि लक्षावधि हो तो भी एक सुशील मुनि उनसे श्रेष्ठ समझना चाहिये. कारण सुशील मुनीश्वरके आश्रयसे शील, दर्शन, ज्ञान और चारित्र घहत है. ऐसे ही मुनिका आप आश्रय करी एसा गाथार्थ है.
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Ramin-HANKam
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संजदजणात्रमाणं पि बरं दुज्जणकदादु पूजादो ॥ सीढविणानं जण सग्गी कुणदि ण द इदरं || ३५५ ॥ घरं संयततः प्राप्ता निंदा संयमसाधनी ।।
नवसंचनतः पूजा शीलसंयमनाशिनी ॥ ३६०॥ विजयोन्या-संयताः परिवन्ति मायसुचरितं ततः पार्श्वस्थादीनवाथयामि इति न चतः कार्यमित्याचसंजदजगावमा शिवरं संयतापमानमपि वरं । दुजणकबाटु पूजादो दुर्जमकृतायाः पूजायाः । कथं? दुजणसंसग्गी सीलविणासं कुणदि दुर्जनसंसर्गःशीलविनाश करोति । न दुइदाज तु इतरं संयत जनावमानं तु नेव शीलविनाशं करोति ॥
संयता मां भदायरा अवमानयंति तन: पावस्थादीनेवाश्रयाभीति न घेतः कार्यमित्याचष्टे -- मूलारा-पष्टम ॥
चारित्रहीन मेरको संयमी जन अपमानित करते हैं इस लिये पाश्चस्थादि मुनिओंका आश्रय मै करूंगा ARI एसी बुद्धि हे मुनिगण : आपको करना योग्य नहीं है. ऐसा अभिशय ग्रंथकार आगेकी गाथामें कहते है.
अर्थ-मंयमी तपस्त्रिओने किया हुआ अपमान भी दुजेनके द्वारा की गई पूजासे बढकर अच्छा है ऐसा समझना चाहिये. क्योंकि दुर्जनोंका सहवास शीलका नाश करता है परंतु संयमी मुनिओंका सहवास शीलका नाश नहीं करता है. अतः सज्जनसहवासही श्रेयस्कर है.
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