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________________ भूलाराधना आश्वासा न केवल आर्या एव त्याज्या । कि तईि सर्योऽपि स्वीजन इत्यनुशास्ति-- मूलारा-सव्वस्थ बाला, कुमारी, युवतिमध्यमा, वृद्धा सुरूपा, कुरूपा इत्यादिविचिन्न दे । अवीसस्था विश्वासरहितः । णित्यरई मरणतं प्रापयति ।। अर्थ-वालिका, अविवाहित कन्या, तरुणी, मध्यम चयकी स्त्री, वृद्ध स्त्री, मुरूप स्त्री और कुरूप स्त्री एसे संपूर्ण स्त्रीमात्रमें मुनिको प्रमादरहित होना चाहिये. विश्वासरहित होना चाहिये, इस रीतीस प्रवृत्ति करनेवाला मनिही आजन्म अपना यमचर्यबत निर्दोष पालन कर सकेगा अन्यथा नहीं. जो मुनि प्रमादी और स्त्रीजनोंमें विश्वासयक्त है यह अपने ब्रह्मचर्यव्रतको नहीं निभा सकेगा. आयीनुवरणे दोषं प्रकटयति सव्यस्तो विधिमत्तो साह सव्यत्य हाइ अप्पवसी ।। सो चैव होदि अजाओ अणुचरंतो अणपबसो ॥ ३३५ ।। विमुक्तः सर्वतो जातः सर्वत्र स्वरशी यतिः ॥ आर्यिकानुचरीभूतो जायतेऽन्यवशः पुनः ॥ ३५॥ बिजयोदया--सव्वत्तो वि विमुसो साइ सम्वत्थ होइ अपघसो सर्चस्मादास्तुमंत्रादिकातिमुक्तः साधुः सर्वत्र भवति स्वयशः । सो बैव स एवात्मयशः । होर मवति । अणप्यवसो अनारमशः । किं कुर्वन ? अजाभो अणुचरंतो आर्या अनुचरन् । मूलारा--सब्ब नो वि सर्वस्मादास्तुक्षेत्रादिकान् । विमुत्तो व्यावृत्तचित्तः । अन्जाओ आर्यिकाः अचम्नी अनु. वर्तगानः | अर्थ--जो साधु घर, खेत, धनधान्यादि सर्व प्रकारके परिग्रहोंसे ममन्नहित हुआ है, वही मर्व वस्नु ओमसे अपने मनको अलग रखकर जितद्रिय होता है. परंतु जो मुनि आर्थिकाकं माथ पारंचय रखता है वह अपनेको आत्माके शुद्ध स्वरूपमें तत्पर नहीं कर सकेगा. अर्थात् जितेन्द्रि यता गुणको छोट घटेगा. इसीलिये आयिं काका परिचय मुनिओंके लिये निषिद्ध माना है.
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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