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________________ मूलाराधना आश्वासा आगमकी प्रभावना होती है क्योंकि आगममें वैयावृत्य करनेका उपदेश किया है और वैयावत्यकारक उसको प्रमाण मानकर बैयावृत्य करता है. वैयावृत्य करनेसे संघको अपना कर्तव्यसंपादन करनेका श्रेय प्राप्त होता है. इस वचनसे ' कज्जपुण्यणि' इस पदकी व्याख्या होचुकी. वैयावृत्त्यस्य फलमाहात्म्य दर्शयति गुणपरिणामादीहिं य विज्जाबच्चुज्जदो समजेदि ॥ तित्यपरणामकम्मं तिलोयसंखोभयं पुण्णं ॥ ३२८ ॥ गवं गुणाकरीभूतं वैयावृत्यं करोति यः॥ लभते तीर्थकृनाम त्रैलोक्यक्षोभकारणम् ॥ ३२८ ॥ विजयोदया-गुणपरिणामादीहि य गुणपरिणामादिभिः कारणभूतैः। पुष्णं तित्थयरणामकम्म समजदि ।। पुष्यं तीर्थकरनामकर्म समर्जयति । कीपक ? सिलोयसंखोभयं त्रैलोक्यसंक्षोभकरणक्षम ।। वैयावृत्त्यस्य परम फलं तीर्थकरत्वनामकर्माख्यं परमपुण्यं दर्शयवि-- मूलारा-स्पष्टम् । वैयावृत्यके फलका माहात्म्य बताते हैं - अर्थ-वैयावृत्य करनेवाला मुनि गुणपरिणाम वगैरे गुणोंकी साहाय्यतासे त्रैलोक्यको क्षुग्ध करनेमें समर्थ ऐसा तीर्थकर नामकर्मका पुण्य बांध लेता है. - ----- -- एदे गुणा महल्ला वेज्जाबच्चुञ्जदस्स बहुया य ॥ अप्पट्टिदो हु जायदि सज्झायं चेव कुब्वंतो ।। ३५९ ॥ लभमानो गुणानेवं वैयावृत्यपरायणः॥ . . स्वस्थः संपद्यते साधुः स्वाध्यायोग्रतमानसः ॥ ३३९॥
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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