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________________ amremainik ग्रेधा विशद्धचित्तेन कालत्रितयवर्तिनः सर्वतीर्थक्रनः सिद्धाः साधवः संनि पजिनाः ॥३२२।। विजयोवधा- जिनि दसवमा ती विकता, सिद्वाः, साधयो, रिश्य । अगदातीदवमाणमदा स निकामर्शिनः । सय निधियण जिदा हानि मा मनोवाशायः पूजिना भवन्ति । मुसाना अहवासः । तीर्थकाइय. स्वदानासंपादनात्यजिनाः, शिविध धर्म नपसोऽन्तमाबाद्वयावृस्यस्य च तदन्तर्गतत्वाद्वयावृत्त्वे पादरा नमवतश्च ध!: पूजिनो भवति ।। वे गावानरिया कालिक निनादीनां पूजा पायने हा युपदिनि । मुलारी-अभिपूजिदा जिनादयालदाजांसपाक्षात्पूजिता भति । दायर नामः नद्रवदिवायुयस्य च तदन्तर्गतत्वात दादरात प्रवृत्तश्च धर्मः पूजितो भवति । ___अर्थ-जो पुनि पैयावृत्य करता है उसने भूतकालीन, वर्तमान कालीन और भविपत्कालीन ती का , सिद्धपरमेष्ठी, साधु और धर्म इनका शुद्ध अन्तःकरणसे मनपचन कायते पूजन किया है एपा समझना चाहिये. यावृत्य करना चाहिच ऐसा तीर्थकरादिकाकी आज्ञा है उसका पालन करनेस तीयकरादिकांकी पूजा की ऐसा आभिप्राय है, उत्तम क्षमादि दशप्रकारके धममें तपका अन्तर्भाव है. और तपमें भी वैयावृत्त्यका अन्तर्भाव है. वैयावत्य में आदर और उसका आचरण करनेसे धर्म का भी पूजन किया ऐसा माना जाता है, -- वैयावृस्य दशविध आचार्योपाध्यायतपस्विशिक्षकलानगणकुलसंघसाघुमनोज्ञभेटेन । तत्राचार्यययावत्य. माहात्म्यकथनायाग्रप्टे आइरियधारणाए संघो सत्रो वि धारिओ होदि ॥ संघम्स धारणाए अब्बोच्छित्ती कया होई ॥ ३२३ ॥ सूरिधारणया संघः सों भवति धारितः ॥ न साधुभिर्विना संघो भूरुहैरिव काननम् ।। ३२३ ।। विजयोदया- थायरियधारणाय वाचार्यधारणातः, संघो सब्यो विधाग्दिो होदि सर्वः संघोऽवधारितो भवति । कथं ? आचार्यों हि रन्नत्रयं ग्राहयति । गृहीतरत्नत्रयोस्ले इति । अतिवारजातानप्यपनयति । तदुपदेश LARAS R AJAPAN
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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