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मूलाराधना
आश्वास
मन में विचार कर उनकी सेवा करता है वह मुनि उनके गुणों में अनुरक्त होकर वैसा गुणवान होजाता है. और जिसक ऊपर बवाचत्य से उपकार किया जाता है उसकी भी गुणोंमें परिणति होती है. अथात् वह अपने गुणोंसे च्युत नहीं होना. इसलिये यह वैयावत्य तप स्वोपकार और परोपकार के लिय कारण होता है ऐमा आचार्य कहते हैं.
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परिणामो मत : म यत्रिगुणात मा
जह जह गुणपरिणामो तह तह आरुहइ धम्मगुणमेदि ।। वढुदि जिणवरमग्गे णवणवसंवेगसढावि ॥ ३१५ ।। यथा यथा निशं साधार्वर्धते गणवासना ॥ ..
जिनेशशासन श्रद्धा परोदेति तथा तथा ॥३१३|| विजयोदया-जह तद यथा यथा गुणपरिणामो ययति नहता भामहर धम्मगुणमेदितथा तथाऽरोहति चारित्रगुमथणीवर धते । जिणवरमग जिनदमाग । कि चईते ? नयनवसंवेमसहावि प्रत्यग्रसंसाराभीस्ताअशापि । र गुणशध्देन गुणनिभातः स्मात प्रत्यय उच्यते । तेनाथमर्थः--यथा यथा यतिगुणानां स्मरण तथा तथा चारित्रमुगानुपागेहति । विस्मृतयतिगुणो न तत्रभवतते । तयां गुणानां स्मरणात्तत्र इचिरूपजायते 1 गुणानुरागिणोहि भव्याः। संमा ग्मीनि: धज्ञान प्रयतमाना दृढयति यति रत्नत्रये । गज़या गाथाया :सुमिता थद्धा व्याख्याता । गुणानामनुस्मरणासत्र म.धिर्मवनि॥
श्रद्धा व्यावष्ट
मूलारा-गुण परिणामी यह गुणशब्देन गुणनिर्भासः स्मातः प्रत्यय उच्यते । तेनायमर्थः । यथा यथा यति. पानां स्मरणं भवनि तथा तथा नरिनगग धिमारोहति । वर्धते च जिनवरमार्गेऽपूर्वा पूर्वसंसारभीकत्वानुषिद्धा श्रद्धा । उक्तं च -
यथा यथानिशं साधावद्धत गुणयासना ||
जिनसशासन पनि नया नया ।। अर्थ-मुनि जस जैसे उनरोत्तर गुणोंमें परिणत अर्थात् दृढ होंगे बस २ चे चारित्रगुणों की नसनीपर आरोहण कर अपने निर्मल स्वरूपको प्राप्त होंगे, और जिनेश्वरक मार्गमें उत्तरोतर ताजी संसारभीरुताकी श्रद्धा बढे गी. इस गाथामें 'गुणपरिणामो' यह समस्त पद है इसमें गुण शब्द का अर्थ स्मरण ज्ञान ऐसा समझना चा।