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________________ मलाराधना आवार दोघांतराणि व्याच.... तित्थयराणाकोधो सुधम्मविराधणा अणायारो || अप्पापरोपवयणं च तण णिहिद हाँद ॥ ३०८ ॥ आज्ञाकोपी जिनंद्राणां श्रतधर्मविराधना ।। अमाचार: कृतस्तंन स्वपरागमवर्जनम् ॥२०॥ विजयोदया-तित्थयराणाकोधो तीर्थकराणामाशाकोपः । सुवधम्माधिराहणा शुतोपविष्टधर्मनाशनं । अणाचारो आचाराभाषः याश्याक्ये तपसि भतः । अपापरोपषयणं च तण णिज्जूद्विव होदि। आरमा साधुषर्गः प्रवचनं च स्यक्तं भवति । तपस्यमुद्योगादात्मा स्यक्तो भषति, आपघुपकाराकरणाचतिधर्गः, श्रुतोपविष्टस्याकरणादागमश्च त्यक्तः॥ मुलारा-कोवो भंगः कृतो भवतीति शेषः । सुदधम्मविराणा शुतोपदिष्टधर्मविनाशः । यावृत्याख्ये तपस्यप्रवृत्तेः । णिज्जूहिदं सपस्यनुद्योगादात्मा त्यक्तः । आपापकाराकरणातिवर्गः । श्रुनोपदिष्टस्याकरणादागमश्च । अन्य दोषांका भी वर्णन करते हैं -- अर्थ ..याधृत्य करना चाहिये ऐसी अर्हत्परमेश्वरकी आज्ञा है परंतु जो वैयावृत्य नहीं करता है उसने उनकी आज्ञाका भंग किया है ऐसा समझना चाहिये. वैयावृत्य न करनेसे शास्त्र में कहे हुए धर्मका नाश होता है. वैयावत्य नहीं करनेसे मुनि मुनिघमका आचार पाल नहीं सकेंग इसलिये धमबिनाश होगा. अनाचार होगा. क्योंकि, कोई भी बयावत्य नामक तपमें प्रवृत्त नहीं होंगे, वयावृत्य न करनेसे अपना, साधुवर्गका और आगमका त्याग होगा. तपश्चरणमें उक्त न होनेमे अन्माका त्याग हुबा, संकटमें उपकार न करनसे यतिओंका त्याग होता है. और शास्त्रोपदिष्ट वैयावृत्यका पालन न करनेस आगमका त्याग होता है. वयावृत्य न करनेस एमे महादोष उत्पन्न होते है. ५२ १ कपुस्तके - पयाग्रस्त्याख्ये तपसि ' इत आरभ्य अनेतनमाधाद्वयं तट्टीका प मोपलम्धा ।
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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