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________________ मृलाराधना आश्व ५१० • विजयोदया-सम्यक्रप्रवृत्ताः होह भवत । पंचमु समिदीस पंचसु समिति । सम्पदा सर्वदा । जिणवयामशुगवमधीवा जिनचचनमनुगतबुद्धयः । तिहि गारवहि रहिया गारवत्रयरहिताः । तिगुत्ता य गुप्तित्रयसमन्विताः भयत । क्व दंडेसु अशुभमनोधाक्कायेषु । मूलारा-समिदा सम्यक् प्रवृत्ताः । तिदंडेसु अशुभमनोवाकायब्यापारेषु । अर्थ --हे मुनिगण ! तुम हमेशा पांच समितिओंमें तत्पर रहो. जिनेश्वरके वचन में अपनी बुद्धि लगाओ. अर्थात जिनपचनके विरुद्ध अपनी बुद्धिको मत दौडाओ, तीन गावसे रहित होकर तीन गुप्तिके धारक बनो. अशुभमन वचन और शरीरकी प्रवृत्तिका त्याग करो. सपणार कसाए बिय अढे रुई च परिहरह णिञ्च ।। दहाणि इंदियाणि य जुत्ता सव्वप्पणा जिणह ! २५८ ।। हृषीकदन्तिनो दुष्टाविषयारण्यगामिनः ।। जिनवाक्याशेमाशु वशे कुमत यत्नतः ॥ २९६ ।। विजयोदया-राणवायो संशा आहाशादिविषया: 1 फरसाण वित्रायानपि । आईमाईच आसरौद्रं च ध्यान । परिहारत निराकुरुत । णिश्च नित्य । दुाद दियाई धानी द्रियाणि च । जुत्तः शुसाशना नपसाव । व्यापणा जिण सर्वशक्त्या इंनियजयं कुरुत । मूलारा-जुना सानेन तपसा च ममादिना: । सयपगा रामना, सर्वसमायः । अर्थ सुनिगण ! आरारादि चारों-संजाप, बार स्याय, पानवाल और रांद्रयान इनका तुम सदा न्याग फरो. बान और तपसे दुष्ट इन्द्रियोंको अपने पूर्ण सामथ्यस जीतो. REALISA धण्णा ह ते मणस्सा जे ते विमयाउलम्मि लोयम्मि ॥ विहरति विगदसंगा गिराउला णाणचरणजुदा ॥ २९५ ।। - -
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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