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लाराना
अर्थ- चायाचार्य : यह गुरु अपरिहावी है ऐसा समझकर शंकाको छोट कर यदि शिष्योंने अपने अपराध तुमको कोसी उनको तुम अगर मन करो. मात्र कायों में समानदी तुम होवो. और अपने नेत्रकं समान बाल और वृद्धामहित सर्व गणका रक्षण करो,
आघात
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णिवदिविहणं वेत्तं णिबढी बा जत्थ दुट्टओ होज || पन्यज्वा च ॥ लादि संजमघादो व तं जो ।। २९५ ॥ प्रत्रज्य संयमध्वंसि दृराजमपराजकम् ।।
न क्षेत्रमात्मनीनेन सेवनीयं कदाचन ।। २९३ ॥ विजयोदया-नृपतिर्वा यक्षिानुष्ठो भवेत्तय क्षेत्र परित्यज । पवजा यलम्मवि जस्थ प्रत्रज्या धन लभ्यते यत्र । शिष्या न जायते तय । संजमघादी ष जत्थ संयमस्य चोपघातो यत्र क्षेत्रे ते वज्जो तत् त्यजेति 1 गणिशिक्षा ॥ गणिसिपना।
साधूनामसेव्यं क्षेत्रमनुशास्ति ।
मूलारा---पव्वज्जा व ण लच्भदि । प्रव्रज्या वा न लभ्यते । यत्र शिपया न जायते तदपि क्षेत्र त्यज । अन्ये न न लयते दातुं कर्तुं नहीन थेनि व्यायाग्नि ।
अर्थ-जिन क्षेत्र में राजा नहीं हैं अथवा दुष्ट राजा है उस क्षेत्रका तुम त्याग करो. जहां प्रवज्या नहीं है अर्थात् शिष्य नहीं होगी अथवा जहां संयमका पात होगा उस क्षेत्रका तुम त्याग कगे, गणिशिक्षा अर्थान आचार्यको जिसमें उपदेश दिया है गला मणिशिशा नामक प्रकरण समान हुथा.
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गणं शिक्षयत्युत्तर प्रबंधन
कुणह अपमादमावासएसु संजमतवोवधाणेसु ॥ जिरसारे माणुस्से दुल्लहबोहिं वियाणिता ॥ २९६ ।।