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________________ मलारावना आश्वासः त्याग करते है. परिग्रहोंका त्याग होने रागादिक विकार दूर होते हैं. कारण निमित्त नष्ट होनेसे उससे होनेवाला कायं भी नष्ट होता है. रागादिकोंका नाश होनेपर उनसे जिनका स्थिनिबंध आम्मामें होता है ऐसे कर्म भी नष्ट होते हैं. काँका अभाव होनपर पार गनिमी में जीवका भ्रमण होना बंद पडता है. इसलिये संवेगयुक्त आचार्य परि ग्रहविषयक हर्षका त्याग करते हैं, ४९७ Amita णिन्द्रमहुरगंभीरं गाहुगपल्हादणिज्जपत्थं च ॥ अणुसिट्टि देइ तहिं गणादिवइणो गणस्स वि य ॥ २८ ॥ गंभीरा मधुरां स्निग्धां ग्राद्यामानंददायिनी ॥ अनुशिष्टिं ददात्येवं स गणस्य गणेशिनः ॥ २८ ॥ विजयोदया-णि मनहहितां । महु, माधुर्यसमाविai । गभीरं साराय तया गृहीतगांभीर्या । गायुगं ग्रा हिंको सुखाययोधां । पल्हादणिज्जपरळ च । चेताप्रल्हादविधायिनी । पत्थं पथ्यां हितां । अणुसिट्टि देह अनुशिर्षि ददाति । ताहि तस्मिन्पूर्वोने देशे काले च । गणाहिनहणो गणस्स यि य गणाधिपतये गणाय च।। कीटशीमनुशिष्टिं कम्मै स ददाति इत्यत्राह -- मूलारा—पिगमधुरगंभीर स्नेहलां, श्रोतृहृदयप्रियां, सारार्थवत्तया अस्पृष्टतलां च । गाइग ग्राहिकां घटित्यर्धनिश्चायनसमर्या । ग्राह्यामित्यन्ये पठन्ति । पल्हावाणिज्ज आनंदकरी । पत्थं मार्गानुगामिनी ॥ नहि तस्मिन्पूर्वोक्त सौम्य तिथ्यादियुक्तकाले शुभप्रदे च ॥ अर्थ---आचार्य गणत्याग करनेके पूर्व बालाचार्य और गणको जो उपदेश करते हैं उसका ग्रंथकार इस गाथासे वर्णन करनेका प्रारंभ करते हैं-आचार्यका उपदेश, स्नेहसाहित, मधुरतासे भरा हुआ, सारयुक्त अर्थसे भरा हुआ और गंभीर रहता है. उसका अभिप्राय सुखसे जाना जाता है. वह मनको आनंदित करनेवाला और हितकर होता है, आचार्य उत्तम तिथि नक्षत्रादि समयमें और उत्तम स्थानमें गण और बालाचार्य को अमंत्रण देकर आगे कहा हुआ उपदेश देते हैं.
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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