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________________ मूलाराध भाधासः HER अथवा अशुचीनां भारः संघातः । अन्ये तु गिलामीति पठित्वा इत्यमर्थ कथयन्ति । गिलामि देई वोढुं अकृतादरोऽस्मि मोमि का : नः परित्या शनि शु. मे नेश्वयः । तो तत; सलेखनानंतर गणमुपैति ।। सल्लेखनाके अनंतर करनेके कार्यका उपदेश करते है अर्थ-यह देह अपवित्र पदार्थोंसे भरा हुआ है और भारभूत है ऐसा समझकर वह सल्लेखना करनेवाला मुनि शरीरको धारण करने में हर्षरहित होता है. दुःखका पात्र ऐसे शरीरसे भयभीत होकर समाधिमरणकी सामग्रीको अपनाता है. और अपने शिष्यों के पास जाता है. AARAMATA सल्लेहणं करेंतो जदि आयरिओ हवेज तो तेण ॥ ताए वि अवत्थाए चिंतेदव्वं गणस्स हियं ॥ २७२ ॥ अपि संन्यस्यता चिंत्यं हितं संघाय सूरिणा ॥ परोपकारिता सद्भिः पाणांतेऽपि न मुच्यते ।। २७२ ।। विजयोदया सालेहण करतो सल्लेखनां कर्तुमुखतः । जब यदि । मायरिभो बिज आचायों भवेत् । तो ततः । तेण तेन । ताप वि तस्यामपि । अवस्थाए अघस्थायां । चितेयव्य चितनीयं । गणस्स गणस्य । दियं हितं । सल्लेखनां कर्तुमुद्यतो विधा भवत्याचार्य इतरश्च । तत्र अनाचार्यः स्वचित्तविक्षेपकारणं परित्यजेत् । आचार्य: पुनः गणायापि हितं चिंतये दित्यनुशास्ति । मूलारा--ताणवि तस्यामपि देहत्यागोदोगलक्षणायाम् | अर्थ-सल्लेखना करने के लिए उद्यक्त हुभा चषक यदि आचार्य पदवी का धारक होगा तो उसने उग अवस्थामें भी-क्षपककी अवस्थामें भी अपने गणके हितकी चिंता करनी चाहिए. कालं संभाविता सव्वगणमणुदिसं च बाहरिय ॥ सोमतिहिकरणणक्वत्तविलग्गे मंगलोगासे ॥ २७३ ॥
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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