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________________ मूलाराधना पाय: ४८१ मा विजयोदया कोहरस य अत्रैवं पदधदना । जो तेर्सि करायाणमुप्पात चेव बजेति यस्तेषां करायाणामु त्पात पक्ष परिहरति । कोएस्स य माणस्स य मायालोमाग सोण दि चर्स क्रोधमानमायालीभानां स नोपैतिषश यस्तेषामुत्पत्तिमपेक्षते स सदशगः कथं कपायलखनां कुर्यादिति भावः॥ अशक्यत्यागम्यादिमामश्रीवशात्पयमानः कपायो वृद्धि मुपयाति इति तद्विनाशने उननक्षमादिप्रयोगग तटुसानियोग एवोपान पनि मूलारा-वसं उच्य कोचादिजन्यमान करत्वादिलक्ष गमावावादिनरिणतिलक्षणपारतंयम । उत्पन्न होनेवाले कपाय वृद्धिंगत होते है ऐसा कहते हैं अर्थ-जो मुनि उन कपायोंको उत्पन्न ही नहीं होने देता है वह मुनि क्रोध, मान, माया और लोमके वश नहीं होता है, परंतु जो उनके उत्पत्तिकी अभिलापा रखता है वह उनके वश हो जानेसे कषायसश्लेखना कसी कर सकेगा? कपायोत्पत्ति परिहर्नुमिच्छता किं कर्तव्यमित्यत आह.--- संवत्थु मोत्तम्बं जं पडि उप्पजदे कसायग्गि ॥ तं वत्थुमल्लिएज्जो जत्थोवसमो कसायाणं ॥ २६२ ॥ तदेयं सर्वदा यत्र कषायाग्निरुवीयते ॥ यत्र शाम्यत्यसी वस्तु तदादेयं पढीयसा ॥ २६२ ।। विजयोदया--तं चारों भोत्तव सहस्तु मोक्तव्यं । जे पहि उपजने अधिभित्तं उत्पद्यते। कलायगी कायाशिः। तं वायुगल्लिएज्जो तस्तूपाथयण कुर्यात् । जन्ध बत्रोपाश्रयणे । उयसमो कसायाण करायाणामुपशमो भवति । कषायोत्पत्तिपरिजिहीर्पणा किं कर्तव्यमित्यत्राह ---- मूलारा-जंधि यद्वस्तु निमित्तीकृस्य । अल्लियजो आश्रयेत् ॥ कपायोन्पत्ति न होनेके लिये क्या इलाज करना चाहिये इसका उत्तर-- अर्थ-जिसके निमित्तसे कपायरुपी अनि उत्पन्न होती है वह वस्तु छोडनी चाहिये, और जो वस्तु ४८१ Dha
SR No.090289
Book TitleMularadhna
Original Sutra AuthorShivkoti Acharya
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1890
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Philosophy, & Religion
File Size48 MB
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