________________
चलाराधना
प्रस्तावना
RAMERAMATARATRA
इसमा पोग्य वर्णन किया है कि जिसका विवेचन सुननेसे और पाचनेसे उनकी पिशासद्धिक विषयमें मन साम्रर्यानंदित झेता है। इन सब बातोंका अनुक्रमणिकासे खुलासा होगा.
अम हम श्रीशिषकोटि आचार्य विषयमें थोडासा कयन करते हैं. प्रस्तुत ग्रंथकी २११५वी गाथामें श्री शिवकोटि थापाथने मार्य जिननंदिगणी, आर्य सगुप्तगणी तया आर्य मित्रनंदिगणी इन नाचायोंके पास मैने अत और उसके अर्थका अध्ययन किया है ऐसा बल्लेख किया है. अनंतर २१५६ वी गाथामें पूर्वीचार्योके बनाये हुय शाम्रोंसे थोडा थोडा अर्थ संगृहीत करके इस्तरूपी पात्रमें भोजन करनेवाले अर्थात दिगंबर मुनि ऐसे मैनेशिवायने यह आराधना नामक महाशाख रचा है.' इस नाम से पंथकार अपना परिचय देते हैं. श्री पं. आशाधरजी 'सिवजेण शिवकोट्यापार्येण मतेति लक्षयति ' सिवज इस शब्दका शिवको टि आचार्य ऐसा अर्थ निकालते हैं. सिवा यह शब्द नामका एक देश बतलाता है. नामैकदेशो नाम्न्य पि प्रवर्तते इस नियम के अनुसार शिक्षकोटि आचार्य इतना पूर्ण नाम सिवज शब्दसे सुचित करते हैं ऐसा अवगत होता है. इस आराधना शासकी रचना शिवकोटि आचार्य ने ही की है ऐसा ग्रंथातरसे भी सिद्ध होता है. महापुराण के कर्ता श्री. जिनसेन आचार्य शियकोटिके विषय में देसा विधान करते हैं:--
शीतीभूतं जगद्यस्य वाचाराध्य चतुष्टयम् ।।
मोक्षमार्ग स पायानः शिवकोटिमुनीश्वरः॥ १९॥ महापुराण पर्व १ ला. सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यक्चारित्र और सम्यक् तप रूप जो चार प्रकार का मोक्षमार्ग है उसकी आराधना जिसके वचनोंसे भन्यजीव करके कर्मसंतापसे रहित होते हैं अर्थात् अपने निराकुल शांत आत्मस्वरूप की प्राप्ति कर लेते हैं वे शिक्षकोदि आचार्य महाराज इम लोगोका रक्षण करें, इस श्लोकमें चार प्रकारके पाराधनावोंका स्वरूप विस्तृत शिषकोटि आरार्थने भगवसी आराधनामें कहा है ऐसा खुलासा होता है. अतः सिवज' यह नामकदेश शिवकोट्याचार्य का ही याचक है ऐसा व्यक्त होता है.
शिवकोटि आचार्यने रत्नमाला' नामक भाषकाचार का वर्णन करनेवाला छोटासा ग्रंथ लिखो है, श्रीश्रुतसागरजीने षट्पाहुड की टीका के एक स्थल में इस रत्नमालों को श्लोक उद्धृत किया है वह इस प्रकार तथा चोक्तं शिवकोटिनाचार्येण ...