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मूलाराधना
आधार
तर्हि केषला शुद्धिः कस्य स्यादित्यत्राहमूलारा-सो इत्यादि संघरसहभाविनी निर्जरां करोतीत्यर्थः ।। किस मुनिके परिणाम केवल शुद्ध होते हैं ? इस प्रश्नका उत्तर
अर्थ-विशुद्धशुक्ललेश्याका धारक जो मुनि वह उत्कृष्ट तप यद्यपि नहीं करेगा तो भी परिणामोंसे निर्मल होनेसे दोपरहित अर्थात् केवल शुद्धिको प्राप्त होता है. ऐसा इस गाथाका अभिप्राय है.
प्रस्तुता द्वितीयां कपारसले वनामुक्त माध्यवसायविशुद्धया योजयति
अन्झबसाणविसुट्टी कसायकलुसीकदरस णस्थित्ति ।। अज्झवसाणविसुदी कसायसल्लेहणा भणिदा ॥ २५९ ॥ करावालदिनास सावशुद्धिः कुतस्तनी ॥
यतस्ततो विधातव्या कषायाणां तनूकृतिः ।। २५९ ।। विजयोश्या-अज्यघसाणविमृद्धी परिणामविशुद्धिः । कसायकलुसीकदस्स कयायः कलुपीकृतस्य । णन्धि नास्ति यस्मात् इति नस्यात् । अस्पायनाणधिसुद्री परिणामविशुद्धिः । कलायमलेरणा मणिया कपायर लेबनेति गदिता।
अध्यवसानविशुद्धया कपायसल्लेखना साभ्यसाधनभावन योजयति ।
मूलारा–अज्झमसाण इत्यादि-स्योदयनिमित्तयाह्यद्रव्यादिसानिध्यवशाधोदयैर्द्रव्यत्रोधादिभिः क्रूरत्वादिरूपं कालुष्वं नीतस्य मुनेरथ्यबसानविशुद्धिर्नास्तीति हेतोः।।
प्रस्तुत कषायसल्लेखनाका परिणामविशुद्धिके साथ संबंध दिखाते हैं
अर्थ-कपायोंसे जिस मुनिका मन कलुषित हुआ है वह परिणामोंकी बिशुद्धीसे दूर रहता है. और जिसके परिणामाम शुद्धता है वह कपायसल्लेखना कर सकता है इसलिये परिणामविशुद्धिको आचार्योंने कपायसल्लेरखना यह नाम दिया है. इन दोनों अविनाभाव है, जहां परिणामोंकी निर्मलता है वहां कपायमल्लेखना है. और जहां कषाय सल्लेखना है वहां परिणामोंकी निर्मलता है.
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